जातक : द्वितीय खंड | Jatak: Dwitiya Khand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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यों तो हर मन में इच्छाओं का,
सागर लहराता है;
दर उमड़ी बदली के लिए,
पपीहा कौन नहीं ललचाता है!
मद-मस्त चदनि चन्द्र देख,
मन किसका नहीं लुभाता है!
पुप्पित, बहुरंगी, बलखाती, बटलरियाँ
कितने नूतन भाव जगाती हैं !
पर, कुछ ही हो पाते तृप्त --
शुष अलियों को तो तरसाती हैं ।
उन अतृप्त, अवसन्न, जडति
अलियों का इतिहास किसी ने जाना?
जग ने जीते को पूजा
हारे को कब पहिचाना !
ज़िन्दगी अनेकों की, विफलता भरी अधूरी होती हे
हर माँग नहीं सिन्दूरी होती दै,
हर प्रीत नहीं अंगूरी होती दे ।
हर गंध नहीं कस्तूरी होती है ।
हर मन को हर बात....
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