तमिल वेद | Tamil Ved
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
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क्षेमानंद 'राहत'- Kshemanand 'Rahat'
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तिरुवल्लुवर - Tiruvalluvar
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रहता दै जिससे उत्सव के दिन सूर्ति की स्थापना करके उसका जुलूप
निकाटते ह । रथ स एक रस्सा बाँध दिया जाता है, जिसे सैकड़ों लोग
-मि कर खींचते हैं । छोग टोलियाँ बना कर रति इए जाते हैं और कमी-
कमी गाते-गाते मस्त जाते हैं । देवमूर्ति के सामने सााह़ प्रणाम करते हैं
गौर कोई कान पर हाथ रख कर उठते चेठते है । जव ॒समारती होती है,
तदं नाम रमरण करते हए दोनो हाथों से अपने दोनों गालो को धीरे-धीरे
थपथपाने रुगते ईह ।
ताभिर नाह् -यद्यपि प्राकृतिक सौन्दर्य से परिष्कादित हो रहा है,
'पर 'अय्यज्ञार जाति को छोड़ कर शारीरिक सौन्दय इन छोगों में बहुत
कम देखने में आता है । दारीरिक शक्ति में यह अब भी लाठं मेकाले के
ज़माने के बंगालियों के भाई ही बने हुए हैं । छोटी जातियों में तो साइस
और व पाया जाता दै, पर अपने को ऊउ चा समझने वाठी जातियों में
र शौर पौरष दी बद़ी कमी दे । चावठ इनका सुद्र आहार है आर
उसे दी यह 'अन्नमू” कहते हैं । गेहूं का ऽपवहार न होने हे कारण अनेक
प्रद्धार के व्यंजनों से अमी तक ये अपरिचित ही रहे पर चावलों के ही
माँ तिन्साँति के व्यज्न बनाने में ये सुदुझ् हैं । पूरी को ये फलाहार के
समान गिनते हैं और 'रसम' इनका प्रिय पेय है, जो स्वादिष्ट और पाचक
होता है ! थाली में यदद खाना पसन्द नहीं ऊरते, केले के पत्ते पर भोजन
करते हैं । इनके खाने का ङ्घ विचित्र दे ।
तामिक बहिनें पा नहीं करतीं और न मारवादो-मषिखाभों की तरह
उपर ते नीचे तकत गनो से छदी हृदं रहना पदन्द करती हैं । र्यो म
दो एक चूद़ियें, नाक कोर कान में दलके ज्वाहिरान से जड़े, थोड़े से
मासूुषग उनके किए पर्याप्त है । वह नौ गज्ञ को रंगीन साडी पहिनती
हैं । कच्छ रऊगाती हैँ जोर चिर सुका रखती द जो बाङायदा ववा रहता
है और जडे मे भायः पए गु था रदता ह । केवर विधये ह्यो धिर को
ईक्ती टै । उनके वार काट दिये जाते ह छौर सफेद साडी पहिनने को
दी जाती श ! बढ़े घरानों की छियाँ भी प्रायः हाथ से दो घर का काम
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