श्री मथुरेश प्रेमसंहिता की भूमिका | Shree Mathuresh Prem Sanhita Kii Bhumika

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Shree Mathuresh Prem Sanhita Kii Bhumika  by हरिदास सानुदास - Haridaas Saanudaas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कै . श्रीमंपुरेशेमसंहिंता-मरथमभाग # (३) ॥ तथा कित्तं ॥ कोकिरते .कुजनते. के कचनारनतें राम कामिनीनेतं निशांक: संरस्योपरे । बैननतें बपुर्ते' विेगनते बैसिनतें विक्रमते विविध प्रकार दरस्योपर ! वापिनते वनतं अवीर तरनत. वार्ति वयास हमेरा हरस्योपरे । वृन्दावन वृक्षनते यद्धरी वितानन्ते जते अजेन्द्रतं बसन्त बरस्योपरे । इस व्रजं भूमिकी महिमा बणेन मे नदह आती सत्य कहा है ॥ ॥ पद्‌ ॥ | | ब्रज महिमा अद्भुत अपार जहां ˆ नन्दकुमार बिहार करत हैं । ढोप' महेश बिशारद नारद अज जाकी रज सीस . . ` धरत है ॥ याकी.धृर तुल्य कोऊ नादी तीरथ सीनंखोक के माही । द्यामा श्याम किये. शख्वाहीं रसिकन को जहां दीखपेरत हैं ॥ अङ्खं निरंजन जन्ईूख भजनं सों गोपी जनकों दंग अंजनें 1 कीडत है. प्रभु कुंज निकुंजन संनरंजन व्रज. विहरत ह ॥ धन मोवधन धन जमुना. जख धन बम्दावन धन श्रीगोकुर. | धन मथुरेदा 'हरीजन वत्सर ` ` जेहि सुमिरत भवेग टरत है ॥ ं सूर्यनारायण का-रथ अभी. हांकाइवा मालूम होता है उनकी सुनहरी किरनों से श्यामायुमानःउयानके तरवा पर . चमकं-वमक-नजरः आने छगी है । यह अतिही शुभ समय ओर ` धन्य ` घडी है इसी आनन्दभ्रद -ओसंर पर.एक इष्ट महात्मा संत बर्ततकी.वहारंकोः निहारते हृये गिरसंज पवेतकी ` तंखेटी से धीरे धीरे' चले “भारहे हैं और बहुत मीठी आवाज से. यह ग़ज़छ गारे |} . `




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