व्रत तिथि निर्णय | Vrat Teethi Nirnaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नततिथिनिर्णय १७ अर्थात्‌ उषाकार माना गया है ! ये निश्चित है किं तिरोयपण्णत्ती उत्तर- युराणसे पहलेकी रचना है तथा भगवानके. निर्वाणकालकी मान्यता अदोषकालकी अधिक प्रामाणिक है । प्रदोपकालमें निर्वाण होनेसे भी निर्वाणोत्सव जनतामें, प्रातश्काल ही होता चला आ रहा दोगा । इसी कारण उत्तरपुराणकारने भगवान्‌ पार्थनाथका निर्वाणकाल उपाकाल सान लिया है । अतएव भगवान्‌ पार्श्चनाथका निर्वाणोस्सव सप्तमी तिथिकी रात दो जानेपर अश्मीके प्रातःकालमें होना चाहिए । यठि सप्तमीकों विद्याखा नक्षत्र मिल नाव तो और भी उत्तम है, अन्यथा सप्तमीकी समासि होनेपर अष्टमीकी प्रातःवेलामे सूर्थोदयसे पूर्वं ही निर्वाणोत्सव सम्पन्न करना अधिक शाख्रसम्सत है । यहां अष्टमी तिथिका आरम्भ -नहीं माना जायगा; क्योकि सूर्योदयके पहले तक ससमी दी मानी जायगी। इस प्रकारके उत्सर्वोमि उदया तिथि ही ग्रहण की जाती है । जिन स्थानॉपर घदष्ठीकी समासि भौर सत्तमीकै प्रातःमे निर्वाणोर्खव सम्पन्न किया जाता है, वह श्रान्त प्रथाहै। इसी प्रकार अपराहमे निर्वाणोत्सव मनाना मी आन्त है । रक्षावन्धन पर्वकी कथा प्रायः विदित ही है। इस दिन ७०१ सुनियोकी रक्षा होनेके कारण ही यह पर्व रक्षावन्धनके नामसे प्रसिद्ध कसर, इञा ह। हरिवशपुसणक्रे बीसबे सर्गमे मुनि विष्णु कुमारका आख्यान आया है ] रक्षाबन्धनकी व्यवस्थाके सम्बन्धमें उदया तिथि दी ग्रहण की गई है । इसका प्रधान कारण यह है 'कि उदयकालीन पूर्णिमा जिस दिन होगी, उस दिन श्रवण नक्षत्र आ ही जायगा | गणितका नियम इस प्रकार का है कि घ्वतुर्दशीकी रात्रिको प्रायः अवण नक्नत्र आ ही जाता है | श्रुतवागर सुनिने मिथिलामें चतुर्दशीकी शनिको श्रवण नक्षत्रका कम्पन देखा था । आराधनाकथा कोदमें बताया गया है-- मिथिरूयामथ ज्ञानी श्रुतसगरचन्दरवाक्‌ । सुनीन्दरौ उ्योस्ि नक्षत्रं श्रवणं भ्रमणोत्तसः ॥ ॥




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