श्री विचार सागर दर्पण | Shri Vichar Sagar Darpan

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Shri Vichar Sagar Darpan by श्रीस्वामी मनोहरदासजी महाराज - Shriswami Manohardasji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छुकबफवफलकयासिय म्ग्ण्प्ण्द प्रावकथन टिफिजाफपाप्यापयायताप्था्थ द ह्डस विचारसागरदपंणके प्रकाशित होनेका श्रेय झ्रजमेरकी जनताको है । मैं अजमेरमे सच १९५३ के तृतीय मासमे आया था । श्रीसदुगुरु स्वामी श्रीलीठाशाहजी महाराजजीकी आज्ञानुसार आनासागरकी वारहृदरीपर गीता व विचारसागर का प्रवचन होने छगा । यहाँकी जनता को वेदान्तमे रुचि रखते हुए देखकर जोधपुरसे सूल विचारसागर मगवाकर वाटि गए । इस प्रकार जव सत्सगियोमे विचारसागरका प्रचार होने लगा तब उनमे यह इच्छा उत्पन्न हुई कि यह विचारसागर सरल खडी भापामे व व्यावहारिक ह्टान्तोसे स्पष्ट करते हुए यदि मेरे द्वारा लिखा जाय तो अच्छा हो । इस प्रकार अजमेर- वासियोकी इच्छा व भगवण्प्रेरणासे मेने इस कार्यको हाथमे लिया गौर यथावुद्धि इसे सरल व स्पष्ट चनानेका प्रयत्न किया है । विचारसागर दो भागोमे है । एक पद्य भाग दूसरा गद्य भाग । गद्य भाग पद्य भागसे बडा है । जो पद्य भागमे है उस सारेको महात्मा श्री निद्चलदासजीने विस्तारपुवक गद्य-भागमे लिख दिया है । अतः यदि कोई श्रीविचारसागरका केवल पद्य भाग पढे तो उसे विचारसागरका पुरा वोघ नहीं होगा किन्तु गदि केवछ गद्य भाग पढा जाय तव तो उस एक भागसे भी पुरा वोध हो सकता हैं । इसी कारण व ग्रस्थके वडे होनेके भयसे हमने पद्य भागकों सपुर्णतया न लेते हुए गद्य भागको ही लिया है । इसमे जहाँ णास्ार्थके कठिन स्थल आते है जो जन-साघारणके वुद्धिगम्य नहीं है उनका साराँग लेनेका ही प्रयत्न किया है । पाँचवें तरज्भके ख्रीनिन्दा आदि स्थानोकों वंसेका वैसा न लेते हुए उसके वास्तविक श्रभिष्नाय वराग्य व




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