योगवासिष्ठ: [भाग-3] | Yogvasishtha [Bhag-3]
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
1620
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ स्मै] : भापाजुवादसदित ्
स्फुरन्ति सीकरा यस्मादानन्दस्याइम्वरेघ्वनौ ।
. सर्वेपां जीवनं तस्मै व्रह्मानन्दात्मने नमः॥ ३॥
तीक्ष्णो काणः कथित् संशयाकृष्टमानम्ः ।
अगस्तेराश्रमं गत्वा युनि प्प्रच्छ सादरम् ॥ ४॥
सतीकष्ण उवाच्
भगवन् धर्मतयज्ञ॒ ` सर्वशास्रपिनिश्चित ।
संशयोऽस्ति `महानेकस्त्वमेतं कृपया यद् ॥ ५॥
इस प्रकार (तत्ः ओर प्स पदार्थका योधन करके तटस्थ लक्षण पर्य-
यसित होनेवले “आनन्दो ब्रहेति व्यजानात् इत्यादि शिते निर्दट निरतिगय
आनन्दरूप परमपुरुपा्थभूत अखण्ड वाक्या्थको नमस्कार करते है--स्फुरन्ति'
इत्यादिसे ।
जिस प्रत्यागासस्वरूप परिपूर्णं निरतिशयानन्द्-मदासमुदरते स्वर आदि छोकोंगें
अर्थात् देवतामिं ओर भूमिम अर्थीप् येतनाचेतन सम्पूणं पदाथि न्यूनाभिक-
मावसे आनन्दलेशका अनुभव होता है और वास्तवमें जिसका आनन्दलेश जीवोंका
जीवन ( आत्मा ) हे, उस परमपुरुपाभमृत ब्रह्मानन्दे रिए नमस्कार है ॥ ३ ॥
यों मंगछाचरणके साथ-साथ विषय आदिका प्रदर्शन करते हुए संक्षेपतः
गाखाधका प्रदर्शन किया। अब उसी शास्त्रारथका उपपति आदि विस्तारपूर्वक
निरूपण करनेके रिष श्रोताओंके विश्वासकी दृढ़ताके लिए _अन्थकार महामूनि
मिष्ट जीर भगवान् समचन्दजीके संवादके आरम्भके पहले उपोदूधातरूप आख्या' और भगवान् रामचन्दजीके संवादके आरम्मके पहले उपोद्धातरूप आख्या
1 कहते है---शुतीक्ष्णो' इत्यादिसे ।
सुतीक्ष्ण नामका कोई ब्राह्मण था । उसका हृदय अनेक प्रकारके सन्देदोसे
मरा था, अतएव उसने महामुनि अगस्तिके आश्रममें जाकर उनसे सादर
प्रन किया ॥ ४॥ 7
सुीक्षणने का--भगवन् , आप धर्मक तच्को जानते दै, सम्पूणं शासका
आपने भठी भांति मथन किया हे, मुझे एक बड़ा भारी संदाय है, कृपा कर आष
उसे दूर कीनिए ॥ ५ ॥
रोनेके वारम हेतु रखता है । निगार न्यूनता और अधिक्ताम “मे टी न्यम या अधिक हैं.
रेरा किये. विषयमे ` अभिमानं कटनैते किया कहता है 1 उक्त अर्मे एष दि छा थे
मन्त कती योद्धा िन्तानातमा पुस्यः प्राणमेव प्राणौ जाम भवति इ्यादि भरति प्रमाण हे `
पन्ता कर्ता बोद्धा विज्ञानात्मा घुरुप प्राणन्नेव पराणो नाम भवति इत्य
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