मिट्टी का कलंक | Mitti Ka Kalank
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ 7
खीवजी षूद पड़ा नेविन उसकी तलवार वहीं पर छूट गई
जिस पर उसका नाम-गाम का पता खुदा था ।
फिर कया था ? स.रे रावले (अन्तःपुर) में, सारे गढ़ में सारे
नयर में यह बात हुवा की भांति फच गई । सामान्तों एवं सरदारों
ने इस बात को भ्रपना भरपमान समभा । उन्होने एके ही स्वर में
गजं कर कषा“ शाज्ञा की बेटी के कक्ष में नाकुछ ठाकुर का
लङ्का भाकर चता गया, ऐसो कुल कलंकिनी की गन धड़ से श्रलंग
कर देनी चाहिये ।”
श्राभलदे के बाप ने स्वयं गर्ज कर कहा-“चाहिए नहीं, काट दो,
मेरी सात पीढ़ी में भी ऐसी निर्लेज्न धीव (पुवी) पैदा नही हृ)
क्या यहौ सावित्री श्रीर सीता की बेटियों के लिए शेष रह
गया है ?
पर 'झाभलदे की मां प्रषनौ बेटी की ढाल बनी रही और यह
तय किया गया कि भविष्य में आमलदे को रावले के बाहर एक
कदम भी नहीं रखने दिया जायेगा ।
हुआ भी ऐसा ही, भीटिया ! बेचारी प्रेम-दीवानी श्राभतदे
खीवजी की याद में सूखंकर कांटा होने छगी । भागने का उपाय सोचने
लगी 1 भरत में उसकी मा रालीद ही गयी ।
एक दिन रानीजी ने राजा से:विनती की--''महाराज ! प्राभलदे
इस बन्दी गृह में घुटन्घुट़ कर मर, रही 'है । यदि आप शाज्ञा दें तो
वदे पुष्कर तीर्थकर साये । धमं कान्चमं होगा श्ौर बाई-सा को
हवा पानी भी गदल जाएगा 1”
सो एक 1 दिन 'श्राम्नलदे पुष्कर चली.। =,
* पुर 'सच बात तो यह, है; “कि ,पुप्कर' ,तो एक , बहाना मात भा,
दरप्स. उपे अपने घेमी सीप्रजी से मिलना था 1
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