एक वासंती रात | Ek Vasanti Raat
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
37 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लेकिन मैं ग्रपने रास्ते पर श्रागे बढ़ न सका । मुझे महसूस हुमा कि
रम्भा की खामोशी की श्रोट में हलचलों का तुफ़ान जुपा हुम्मा है, शायद बहू
कोई बात सुभसे कहना चाहती है । मैंने उसके क़रीब बढ़कर पूछा, “बताओ
न, रम्भा, क्या बात है ?””
प्रचानक ही वह बोली, “यह मेनन बहुत दुष्ट है 1
मेनन ऊँचा-पुरा गठीले डील-डौल का एक ईसाई युवक था श्रौर जनलिउम
की क्लास मेँ हमारा सहपाठी था । मिस रम्भा की इस बात का श्राख़िर क्या
मतलब ? मैं पूरी बात सुनने के लिए ,चौकनना हो गया, लेकिन रम्भा तो जसे
विमटों की बोतल की तरह खल गयी थी । अरब वह हँस रही थी ; उसके चेहरे
रहेंसी का फेन इस तरह उभर श्राया था. जसा मैंने पहले कभी नहीं देखा
था, लगातार क़हक़हें !
हूंपते हुए ही वहू सामने खड़े एक रिक्शो की श्रोर बढ़ गयी श्रौर उसमें
बैठकर तेज़ी से भ्रोभल हो गयी । हँसी से दोहरी होती हुई मिस रम्भा सच-
मुच मेरे लिए एक पहेली हो गयी । बिजली की चमक की तरह वह मेरे
खयालों मे उतर गयी मैं उसके बारे में सोचने के लिए विवश था ।
ग्रौर जो बात पहले एकाएक पकड़ में न श्रायी थी, उसे किचित गौर
करने पर मै सहज ही समक गया-मेनन ने रम्भा से ज़रूर कोईशरारत की
होगी, उसे छेड़ा-छाड़ा होगा, उसकी नज़र में रम्भा चढ़ गयी है, तभी तो”*”
आ्रोह, इतनी सीधी-सी बात ! यह रहस्योदूघाटन विचित्र था । मैं हंक्का-बक्का
रह गया । एकाएक विश्वास नहीं होता था लेकिन श्विद्वास भी तो नदहींकर
सकता था - रम्भा झाख़िर मुमसे झूठ क्यों बोलेगी ?
उस दिनके बाद मँ मेनन पर, उसकी हलचल पर नजर रखने लगा,
लेकिन मुझे कभी कोई ऐसी बात न दिखी जिससे बह 'दुष्ट' समभा जा सके ।
वह् एक हुंसमुख श्रौर वाचाल युवक था । लेकिन वह कभी भहा व्यवहार न
करता श्रौर क्लास में रम्भा उसके करीब भी बैठी होती तो भी वह उसमें
कोई रुचि न लेता--कम-से-कम मुकते तो ऐसा ही प्रतीत होता था । लेकिन
रम्भा का एक ही हुठ था ; मेनन के प्रति उसकी शिकायतों का खजाना उत्तरो-
त्तर बढ़ता जा रहा था । एक दिन उसने पुछा, “मैं क्या ऐसी सुन्दर हूँ जो
लोग-वाग मु एकटक घुरें ! ' ई
प्रत्युत्तर में मैंच एक उनटती-सी निगाह उसके चेहरे पर डाली; फिर -
कहा, “तुम बदसुरत तो हीं हो, लेकिन फिर भी लोग तुम्हें घूरें क्यों ?''
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