देश का भविष्य | Desh Ka Bhavishya
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
658
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देश का भविष्य ] ४
जाना था, तो डाकखने में अपने पत्र रिडाइरेक्ट कर दिये जाने की सुचना नहीं
दे सकती थी ? वह् तो उमिला की तरह् असहाय ओौर जग-व्यवहार से अपरिचित
नहीं है; दूसरों को उपाय वता सकती है, वड़े अफसरों से वात कर सकती है ।
उसे क्या मेरे पत्र की प्रतीक्षा नहीं थी? अव मै क्या कर सकता हूँ ?
पुरी म्युनिसिपल कमेटी के एक वड़े काम का विल वना रहा था । मस्तिप्क
में भरी परेशानी के कारण आँखों के सामने रुई के फाहे से उड़ रहे थे । चह
चहुत देर तक अवसाद से निष्वेष्ट, मूढ़ सा बँठा रहा । सहसा उमिला का
व्यान आया- ऊपर जा एक गिलास जल तो पी आये ।
पुरी के हाथों ने मेज़ पर खुला पड़ा पेन उठा कर बन्द किया और कमीज़
की जेव में लगा लिया । वहू हृदय की वेदना में दांतों से होंठ दवाये ऊपर कमरे
में चला गया । पुरी ने खाट पर बैठते हुए गहरी सांस लेकर धीमे से जल के
लिये पुकारा--''प्रवोण”
उमिलाके प्रति संवेदना के कारण उसे पुकार कर क्षुव्ध करने की
इच्छा न हुई ।
पुरी को उत्तर न मिला; न प्रवीण से, न वे-जी से । उमिला सिर और
कन्वो को ओदनी मेँ लपेटे, भाँखें फश पर गड़ाये जल का गिलास लिये आयौ ।
उस ने गिलास पुरी की ओर बढ़ा दिया ।
प्रवीण, वे-जी नहीं है?
उमिला ने इन्कार में सिर हिला दिया ।
पुरी ने उमिला के हाथ से गिलास लेकर चारपायी के नीचे रख दिया ।
गहरे साँस से वोला--''उर्मी ] ”'
पुरी ने उमिला का भीगा हुआ हाथ अपने हाथ में ले लेना चाहा ।
उमिला ने हाथ पीछे हटा लिया ।
“र्मी, अव क्या मुझे पहचानती भी नहीं ?” पुरी ने कहा और वाहु
वदा कर उमिला को कमर से जपनी जर खींच लिया, जसे मचलते वालक
को पुचकारने के लिये पकड़ रहा हो ।
उमिला बोली नहीं । उस ने घूम कर गौर झुक कर पुरी की वाँह से
छूटने का यरन किया ।
पुरी ने उस की कमीज का दामन पकड़ कर अनुरोध किया--''देखो,
एक वार सुनौ तोः“
उमिला तव भी न वोली । दामन छुड़ा लेने के लिये कमीज ज़ोर से झटक
ली। कपड़ा फट गया । मौन रहने पर भी खीझ मौर झुंझलाहट उपिला के
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