देश की बात | Desh Ki Baat

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Desh Ki Baat by शंकर सहाय सक्सेना - Shankar Sahay Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आधुनिक युग का आरंभ ७ धघर्म-गीतों को लिया, छुछ नए धर्म-गीतों की रचना की ओर उसके वाद से तो गिरजाघरों में सामूहिक संगीत की परिपाटी ही चल पड़ी। इस नई आवश्यकता के आधार पर वाद्य-यंत्रों में भी परिवर्तन ओर सुधार हुए। आधुनिक आओ पेरा का जन्म सी तभी हुआ | साहित्य के विकास मे सबसे अधिक सहायता सुद्रण-कला के आवि- प्कार से मिली । आज से पाँच सो वर्ष पहले यूरोप में जितनी भी पुस्तकें प्रचलित थी, वे सव हाय से लिखी जाती थीं । प्राचीन यूनानी चर रोमन एक क्रिस्म की मोटी घास से वनाए मुद्ृण-कला का गद रेशों से एक चीज तैयार करते थे, जिसका उपयोग आविष्कार पुस्तक लिखने के लिए किया जाता था। वाद में छुछ जानवरों की खालों को साफ करके उनसे लिखने का काम लिया जाने लगा ¦ ये दोनों ही तरीके महँगे ओर दुःसाध्य थे। चीन के लोगों ने ईसा से भी दो सो वर्ष पहले रेशम से एक प्रकार का कागज तेयार करना आरंभ किया था । दमिश्क के मुसलमानों ने आठवीं शताउद्ी में रेशम के बदले सूत का प्रयोग करना झुरू किया ओर वाद में यूनान, दक्षिण इटली ओर स्पेन मे उसका प्रचलन हो गया तेरहवीं शताउदी में इटलीं में एक किस्म का लिनन का कागज काम से लाया जाता थधा। वाद में उसका प्रचार फ़ांस, पश्चिमी यूरोप ओर मध्य यूरोप के सभी देशों मे हो गया। कागज के आविष्कार के बाद ही मुद्रण-कला का प्रचार संभव हो सका। प्रारंभ में लकड़ी पर उल्टे अक्तारों में पुस्तकें खोदी जाती थीं ओर. उस पर स्थाही लगाकर काग्रज़ .पर छाप लिया जाता था। पहले इसमे असुविधा बहुत अधिक थी। अच्चरों के ढालने का काम सबसे पहले हालेयड के एक व्यक्ति ने आरंभ किया। उसके वाद्‌ उन अत्त को शब्दों ओर वाक्यो में व्यवस्थित करके छपाई का काम सरल वनाया जा सका। वरावरी की झँचाईवाले इन अच्तरो को एक सोचे मे जमा लिया जाता था ओर एक ध्र के छप जाने पर उन्दे अलग अलग करके दूसरे গর্ত के लिए नए सिरे से जमाना पड्त्ता था । शुटेन बमं (छ पाौरणफप्पट, 1898-1468) नाम के एक व्यक्ति ने जमेनी के एक नगर में पहला छापाखाना खोला । धीरे घीरे यह कल्ला जमेनी भर में ओर वहाँ से इटली, मांस, इंग्लेएड ओर यूरोप के अन्य देशों में फेल गई। यूरोप के सभी बड़े नगरों में छापेखाने स्थापित हो गए |




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