संस्कृत काव्यशास्त्र को पंडितराज जगन्नाथ का योगदान | Contribution Of Panditaraja Jagannatha To Sanskrit Poetles
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
85 MB
कुल पष्ठ :
538
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कमलेशदत्त त्रिपाठी - Kamalesh Datt Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)- कक हक ड । |
रसगंगाधर कै संस्करण यँ पाठौ की श्र्ुद्धि स्क समस्या एही है, किन
उसकी ग्रौर् महामहौपाच्याय शिरिधिएर शपा चतुर्वेदी ने पर्याप्त संकेत कर. दिया था
श्री रिवप्रसाद भटाचार्थ ने थी रसमगाधर आर नागेश की गुरुसर्मप्रकाश व्यद्ख्ययु
के पाठ दौथाएँ की सूची दी है । * उन्होंने रसगंगाधर के टीका कार तथा रस-
गंगाधर के संपाधित आकार का थी विवरण दिया है । रै इस विवरण मैं हम
रसगंगा धर के हिन्दी आतुवादक शी शुरू धनेत्तम चतुर्वेदी. सराठी अनुव ¶ दक
श्री राण्व० भआाठवते* तथा' कन्नह - अतुवादक श्री टी ०्जी० सिद्धप्पराध्या का नाम
बाएं जॉड़मा चाहते हैं | ९ इनवै अनुवादी सै पक्त समने म बहुमूल्य सहायता एस-
गंगाधर फे अष्यैता क प्राप्त डौती है ।
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पाएिहतराज : ब्रालीचक : ~~ पण्डितदराज नै पुर्वाचार्यों के सिद्धान्तीं आर क यना
क बहुशः पतौपस्थापन शर् आत्तीचनं किय । भरत से लेकर अप्पय दीज्ित तक
ग्राचार्य उनकी प्र् प्रतिभा सै अलीयत हृ ह । अप्पय दीग्ित श्रीर् भटूैजि-
दौशित तौ उनकै कटाः आत् कठोर वाणि कैभी श्ग्सेट बनें हैं । किन्तु इनक
गरतिरिक्त उद्भट, वामन, आनन्दवर्धन, मम्मट शौर उनकै टी काका रुयुयक,
शौभाकर्, जयरथ, विश्वनाथ आदि प्रमुख काव्यशास्वरीय श्राचाय कै मतौ प्
विचार करते छुए पाएिडितराज की वाएणि गम्भीर नीर-द्ीर् विवैकिनी अर.
ब्रत्यन्त संयत शै है | सारी की सारी काष्यशी स्वीय परम्परा में उक्त, अमुक्त
शरैर् दुत्त पर् चिन्तन करते हुए उन्होंने श्पने निव्कण धुत मत उपस्थित किये ।
१. रसगंगाधर ~~ पारमिक वक्तव्य, पुण २१४
२. एसर्गगधर रण्ड इट् ग न्द्री व्यृशन ~ पृऽ २२० स्टडीज इन ई ण्ठियन पह टिक्स
३. भटूवार्य वे एस संगाधर् कै नाम शौर उसके वीकरण ` ्राननः की व्यंजन कै
श्रधाद् पद् श्य मन्य के गर्तकाद् के संबंध मै श्रपना पत दिय हे । ं
४. नागरी'प्रचारिएनिसभा, कड़ी
४५« तिलक म्र विद्यापीठ, पुण
£ . अग्ष, १६६५
, प्समनगाधर् शण्ड इटूस कान्द्रा व्यू, पाव टिप्पणी ६६, प १६ `
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