नागरीप्रचारिणी पत्रिका भाग - 1, 2 | Nagaripracharini Patrika Bhag - 1, 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
159
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वाल्मीकि रामायश के तन् पाठं १३
६०--अझकंपन रावख के पास जनस्थान से समाचार ज्ञावा है भौर सीवा-
हरण की सम्मति देवा है; इसपर रावण मारी से मेंट करता दे ( दा० ३१ ) ।
गौ० तथा प० दोनों मे नहीं है ।
६१--सीता के लिये राम का बिलाप दाक्षिणात्य में सबसे विस्तृत दे । दात्ति-
शात्य में गौढ़ीय से तीन सग॑ झौर परिचिमोत्तरीय से दो सग॑ अधिक हैं ।
(४) दा० ६० में राम सीता को खोजते हुए धृतो भौर पशु-पक्षियों से
पूछते हैं । यद्द गौ० में नददीं है किंतु प० में है ।
(भा) दा० ६२, साठवें खर्ग की पुनरावृद्ति । अन्य दोनों पाठों में नददीं है ।
(४) दा० ६३, राम का त्रिष्टभ् छंद में विज्ञाप । गौ० तथा प० में नहीं है ।
६२--छयोमुखी राक्षसी की कथा; लददमण इसका भंग-मग करते है ( दाः
६६११-१८ ) | गौ० ७४ तथा प० ७६ में नहीं है ।
६९--कबघ को शाप देनेवाले ऋषि स्थूलशिरख की कथा :/ दा०
५१।२-५) । गौ० ५५ में यह प्रसंग नह भिक्लवा, किंतु गोरेखियो का कथन दे कि
यह कथा प्रक्षिप्त प्रतीत होती है, झतः उसे मैंने काट दिया है। प० ७८ में भी है
इखलिये यद्यपि यह कथा प्रसक्त है, कितु विभिन्न पठों क प्रथ् हो जनि
के पूर्व की है ।
घ्--शबरी का राम को 'दिववर' कहना ( दा० ७४।११-१३ ) । यह नतो
गी० ७७ में है और न प० ८० में ।
(श्रा) वह सामग्री जो दा० पाठ में नहीं है श्रौर शेष एक या दोनों में हे
नै
इ५--प० पाठ में अगस्त्य राम को दृढकं वन की कथा सुनाते हैं
( प० १७1१० आदि ) । यह दा० तथा गौ० के समानांतर सर्गों में नहीं है । प० के
संप्रदकर्ताओं ने इस प्रपंग को उत्तरकांड से लेकर यहाँ रख दिया है ( दा० उतर०
७९-८१ )।
६६-शुपणखा रावण-चरित्र के वर्णन मेँ कहती है कि रावण ने गोकश
पर तपस्या की ओर उसने कामरूपत्व का वरदान पाया । ( गौ० ३६। १८.२२ तथा
प० ६६ ) । ये दोनों बातें दा० ३२ में नहीं हैं।
६७--रावण-मारीच-संबाद पर गी० तथा प० में दा० की छापेक्ता दो सगे
अधिक हैं--
गौ० ४६ छर प० ४५-रावण के प्रस्वाव पर मारीव की भौर झापत्तियों;
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