ईश्वर सिद्धि | Ishwar Shiddhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ ईश्वरसिद्धि टका मत हे कि, “सखृष्टि-नियमकी उत्पत्ति अवश्य ही बुद्धिसे हुई हैं । इसका स्पष्ट तात्पर्य यह है कि, सृष्टि. नियम जड प्रकृतिसे नहीं उत्पन्न हो सकता । प्रकृति जड़ है और उससे बुद्धि या बुद्धिसे उत्पन्न होनेवाली घटनाएँ उत्पन्न नहीं हो सकतीं ।” (फ़िटका “आस्तिकवाद”; प्रष्ठ १७२) सिटिका मतलब यह है कि, जड़ प्रकृतिमें जो इतनी खुव्य- वस्था देखी जाती है, व, सूय, नक्चत्र, सागर, पवेत, ऋतु, मास, छता, पुष्प, मनुष्य आदिके यथास्थान ओर यथा- काल जा स्थापन, परिवद्धन, परिवक्तन, सौन्दर्य, गति आदि क्रम देखे जाते रै, प्रहृतिकी सारी वस्तुओंमें जो एक नियम वा नियम-बद्धता देखी जाती है तथा प्रति ओर उससे उत्पन्न पदाथमिं जो सरक्षण, सिति अर प्रयोजनीयता पायी जाती है, वह सब वुद्धि-पूर्वंक काय है, निर्बुद्धिक नही । जड़ प्रकृतिमे बुद्धि नदी, उसमें, सोचने-समभनेकी ताकत नहीं । फलत: एक ऐसे बुद्धिमान, व्यक्तिको मानना पड़ेगा, जो इन सारी व्यवस्थाओंको बनाये हप है । वही व्यक्ति नित्य ईश्वर है। सृष्टम बुद्धि-पूर्वकताका देखकर ईश्वरका वेसे ही अनुमान होता रै, जिष्ठ प्रकार सवका गिरना देखकर न्यूटनने पृथि वीकी आकषेण शक्तिका अनुमान किया था अथवा जेसे गेखोलियोने पृथिकीकी गोखादेका अनुमान लगाया था । प्रत्यक्षयादी नास्तिकोंके यहां भी इसीलिये रोटी बनती है




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