ब्रजभाषा और खड़ीबोली का तुलनात्मक अध्ययन | Brajabhasha Aur Khadi Boli Ka Tulanatmak Adhyayan

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Brajabhasha Aur Khadi Boli Ka Tulanatmak Adhyayan by कैलाशचन्द्र भाटिया - Kailashachandra Bhatiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ | शताब्दी में उत्तर भारत के श्रार्योँकी विविध बोलियों से युक्त एक भाषा प्रचलित थी । जन साधारण कौ नित्य व्यवहार की इस भाषा का क्रमागत विकास वस्तुत वेदिक युग की बोलचाल की भाषा से हृश्रा था । इसके समानान्तर ही इन्हीं बोलियों में से एक बोली से ब्राह्मणों के प्रभाव द्वारा एक गौण-भाषा के रूप मे लौकिक संस्कृत का विकास हुश्रा । कालान्तर मे इसने मध्ययुगीन लेटिन कौ भाँति श्रपना विशिष्ट स्थान वना लिया । शताब्दियों से भारतीय श्रार्य-भाषा प्राङृत नाम से पुकारी जाती रही । प्राकृत का प्रथं है- नैसर्गिक एवं श्रकरन्निम भाषा । इसके विसद्ध संस्कृत का भ्रथ॑ है--संस्कार की हुई, तथा कृत्रिम भाषा । “प्राकृत” की इस परिभाषा से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन वेदिक मंत्रों की बोलचाल की भाषाएं बाद के मंत्रों की क़ुत्रिम संस्कृत भाषा की तुलना में वास्तव में प्राकृत (नेसगिक) भाषाएं . थी । वस्तुतः इन्हें भारतवष की प्रथम प्राकृत कहा जा सकता है 1 इस प्रथम प्राकृत को ही श्राचार्य किशोरीदास वाजपेयी ने वेदिक काल की 'प्राकृत' भाषा कहा है । उनके अनुसार वेदिक काल में ऋषियों से इतर साधारण जनता किसान भी थे, मजदूर (दासजन) भी थे श्रौर क्ञासक (दिवोदास, सुदास जेंसे पराक्रमी नेता) भी थे । कुछ ऋषि भी थे । ऋषियों ने मंत्र रचना, जिस भाषा मे की, वहु उस समय की जन भाषा ही थी, पर उससे कुछ भिन्न भी थी । यह रूप-भेद स्वरूपत: नहीं, परिष्कारजन्य तथा प्रयोग वेशिष्ट्य-कृत था । भ्राज भी ` साधारण जनभाषा में अर साहित्यिक भाषा में उतना ही श्रन्तर है । बाजार की हिन्दी में श्रौर साहित्यिक भाषा में उतना ही श्न्तर है । बाजार की हिन्दी में श्र साहित्यिक हिन्दी में कितना श्रन्तर है । इस श्रन्तर के कारण नाम-भेद यदि करें तो साधारण जनों की व्यवहार-भाषा को इस समय की 'प्राकृत' प्रौर साहित्यिक भाषा को “सुसंस्कृत' भाषा कह सकते हैं । वैदिक तथा लौकिक संस्कृत उपयु क्त दोनों प्राकृतो के मध्य की भाषा “संस्कृत' नाम से अ्रभिहित है । वेदिक भाषा का प्राचीनतम रूप ऋभ्वेद में सुरक्षित है । ऋग्वेद की भाषा में विभिन्न स्थानीय बोलियों का मेल दिखाई देता है । ऋग्वेद-संहिता के सुक्तों की रचना पंजाब प्रदेश में हुई । तत्कालीन पंजाब की भाषा जो “उदीच्य भाषा के रूप में मानी जाती है 'श्रादद भाषा” का रूप थी । इसमें ही श्रार्य भाषा का प्राचीनतम रूप सुरक्षित है । भाषा को भ्रादर्शं रूप से तात्पयं है वह्‌ रूप जिसको शिष्ट बोलते हैं श्रौर शिष्ट वे लोग हैं जो विशेष शिक्षण के बिना ही शुद्ध संस्कृत बोलते हैः व्याकरणं का प्रयोजन १, किशोरोदास वाजपेयी--प्राकृत, श्रपभ्र दा श्रौर बतंमान भारतीय भाषाएं सम्मेलन पत्रिका, भाग '४६, संख्या ४ पृष्ठ ४० ।




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