सुकुल की बीबी | Sukul Kii Biibii
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुकुल की बीबी ११
था । कत्पना में सजने के तरह-तरह के सूट याद आए, पर;
वास्तव मे, दो मैले कुर्ते थे । बड़ा गुस्सा लगा; प्रकाशकों पर ।
कहा; नीच हैं, लेखकों की क़द्र नहीं करते । उठ कर मुंशी जी
के कमरे में गया, उनकी रेशमी चादर उठा लाया । क्रायदे
से गले में डाल कर देखा, फएवती है या नहीं । जीने से आहट
नहीं मिल रही थी, देर तक कान लगाए बेठा रहा । बालों
की याद आईइ--उकस न गए हों । जस्द-जल्द आइना
उठाया। एक बार भंह देखा, कई बार आँखें सामने
रेल-रेलकर । फिर शीशा बिस्तर के नीचे दबा दिया |
शो की -'गेटिंग मेरेड' सामने करके रख दी ¦ डिक्शनरी
को सहायता से पढ़ रहा था, डिक्शनरी किताबों के अंदर
छिपा दी । फिर तन कर गंभीर मुद्रा से बैठा ।
आगंतुका को दूसरी मंजिल पर आना था । जीना
गेट से दूर था ।
फिर भी देर हो रही थी । उठ कर कुछ कदम बढ़ा कर
देखा, मेर बचपन के मित्र मिस्टर सुकुल आ रहे थे ।
वड़ा बुरा लगा यद्यपि कड् साल वाद् की मुलाक़ात
थी। कृत्रिम हंसी से होंठ रंग कर उनका हाथ पकड़ा, और
लाकर उन्हें बिस्तरे पर बेठाला |
बैठने के साथ ही सुकुल ने कहा--““श्रीमतीजी आई
हुई हैं ।”
मेरी रूखी जमीन पर आपाढ़ का पहला दोंगरा गिरा ।
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