श्रीरामकृष्णलीलामृत भाग - 1 | Shriramakrishnalilamrit Bhag - 1
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
473
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पंडित द्वारकानाथ तिवारी - Pandit Dwarkanath Tiwari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना
छोटे बड़े विश्व-परमाण अपने अपने स्थान मँ स्वतन्त्र हेते हुए--इस स्वतन्त्र
व्यक्ति की रक्षा करने वाले नियर्मो के कारण स्वतन्त्र रहते हुए मी-- आपस
इस तरह बेधे हुए हैं कि वे एक दूसरे के साथ एकजीव होकर तथा मिलकर, एक
ही वस्तं बन गघे है | अनेकता में एकता तथा एकता में अनेकता ही विश्व का
रहस्य है । एक ही आद्रितवय सत्ता इन मिनन भिन्नरूपौ भ प्रकाशमान ह ओर
इसी में विश्वरचना का सोन्दयं हे। अस्पज्ञ मनष्य इस पिश्व-रहस्य को जान छे
र तदनरुप ही अपने कटम्ब की रचना करै, इसी मँ मनुष्य का मनुष्यत्व है ।
ही उसके ऐहिक कर्तव्य की चरम सीमा हे। यह् बात हूद्रन अन्तःस्फति से आर्य
जाति की समझ में आ गई थी और उसी के अनुरूप उसने अपनी संस्छति कं,
उन्नत बनाया । परन्तु ज़ब नर्वान मानव वंश का निर्माण हुआ, उसे नई नई
संस्कृतियाँ प्राप्त हंई ओर उन्हीं संस्कतियों द्वारा उत्कान्त होकर आन॑तर् जगत्
वर्तमान स्थिति में पहुँचा तब कहीं उसे आयं संस्छति पर विचार करने की
योग्यता प्राप्त हुईं ओर उन्हें इस विश्वसत्य का आमास होने लगा । 106 ५ष्,
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इस विश्वरचना का बहुत सा अनुकरण शासन विभाग म॑ किया गया, जर्
आज यह बात अमेरिका के संयुक्त राज्य की शासन-पद्धति म॑ हमं दकाः देनी
है। धीरे धीरे अन्य मानव जातियां भी इसका अनुसरण करेंग। । जसे बाह्य
व्यवहार में यह कार्य हुआ, उसी तरह धर्म-झेत्र में भी होना चाहिए और मिन्न
भिन्न धर्मं अपने तदं पणं खतन्त्र तथा प्रथक् रहते हुए भी एक साथ मिलकर एक
समन्वय स्वरूप किन्व धम की पुष्टे कर उसकी ओर अग्रसर हों । अब यह बात
मानव-जाति कै हित की दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक हो गर्ह दै। संसार के समी
विचारशीठ पुर्णा को इस बात का निश्चय घे चुक्रा हे । समी धम एक ही सदट्स्त्
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