वेलि किसन रुकमणी री | Veli Kisan Rukamani Ri

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Veli Kisan Rukamani Ri by स्व. महाराज श्री जगमाल सिंह जी साहब - Sw. Maharaj Shree Jagmal ji Sahab

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका | बड़ा विभाग रै । ब्रज एवं गुजराती इसको सगो बहनें रँ जिनसे यह बहुत मिलती रै । डाकूर भ्रिन्रसेन ने इमकौा अन्तरंग शाखा में सम्मिलित किया है पर लिखा है कि बहिरंग भाषाओं का प्रभाव भी इस पर बहुत पड़ा है । डाकूर साहब का उक्त बहिरंग एव झन्तरंग वर्गीकरण सवसम्मत नहीं है। कुछ विद्वान भाषाओं कं संयागात्मक एवं विच्छेदात्मक (६५11।1८।1८ 2110 11) | {1८} दा भेद करके राजस्थानी का विच्छेदात्मक भाषाओं को श्रेणी में रखते हैं । सच पूछा जाय तो दोनों विभागों में विमेददशक विशेषतायं कोई हैं ही नहीं । राजस्थानो भाषा क्रा जन्म विक्रम की दसवीं शताब्दी क॑ अस- पास हुआ है। उसका विकास-काल तीन कालों में बाँटा जा सकता है-- १---प्राचीन राजस्थानी --विक्रमीय १६ वीं शताब्दी पयेन्त । र--माध्यमिक राजस्थानी--विक्रमीय १४ वी शताब्दी तक । ३--प्राधुनिक राजस्थानो--वि० १ वी शताब्दी से अरब तक । राजपूतों क उत्थान कर साथ हा राजस्थानो का विकास प्रारम्भ हुआ । चारणा लोगों ने इसकी खूब उन्नति की । इसी समय हिन्दी की दा श्रार शाखायं हाथ पाँव चलाने लगी । मुसलमानों ने खड़ी बाली का अपनाया श्रोर साधु, महात्मा, क़ृष्णाभक्त वेष्णावों ने ब्रज भाषा को । खड़ी बाली तो उस समय विशेष उन्नति नहा कर सको, पर कृष्णाभक्ति नेव्रजको शीघ्र हौ उन्नति कं चरम शिखर पर पहुँचा दिया । राजस्थानी कवियों ने भी ब्रज में लिखना शुरू किया । डिंगल का भी खूब ज़ोर रहा, यद्यपि वह बोालीजानेवाली भाषा से धीरे धीरे दूर पड़ने लग गई थी । इस काल कं अन्तमं भाषा-विज्ञान की दृष्टि से राजस्थानी में कई एक परिवर्तेन हुए जो मुख्यतया वशे-सम्बन्धी परिवर्तन थे । इस काल में गुजराती 17. 9




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