वेलि किसन रुकमणी री | Veli Kisan Rukamani Ri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
43 MB
कुल पष्ठ :
937
श्रेणी :
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No Information available about स्व. महाराज श्री जगमाल सिंह जी साहब - Sw. Maharaj Shree Jagmal ji Sahab
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका |
बड़ा विभाग रै । ब्रज एवं गुजराती इसको सगो बहनें रँ जिनसे यह
बहुत मिलती रै । डाकूर भ्रिन्रसेन ने इमकौा अन्तरंग शाखा में
सम्मिलित किया है पर लिखा है कि बहिरंग भाषाओं का प्रभाव
भी इस पर बहुत पड़ा है । डाकूर साहब का उक्त बहिरंग एव
झन्तरंग वर्गीकरण सवसम्मत नहीं है। कुछ विद्वान भाषाओं कं
संयागात्मक एवं विच्छेदात्मक (६५11।1८।1८ 2110 11) | {1८} दा भेद
करके राजस्थानी का विच्छेदात्मक भाषाओं को श्रेणी में रखते हैं ।
सच पूछा जाय तो दोनों विभागों में विमेददशक विशेषतायं कोई हैं
ही नहीं ।
राजस्थानो भाषा क्रा जन्म विक्रम की दसवीं शताब्दी क॑ अस-
पास हुआ है। उसका विकास-काल तीन कालों में बाँटा जा
सकता है--
१---प्राचीन राजस्थानी --विक्रमीय १६ वीं शताब्दी पयेन्त ।
र--माध्यमिक राजस्थानी--विक्रमीय १४ वी शताब्दी तक ।
३--प्राधुनिक राजस्थानो--वि० १ वी शताब्दी से अरब तक ।
राजपूतों क उत्थान कर साथ हा राजस्थानो का विकास प्रारम्भ
हुआ । चारणा लोगों ने इसकी खूब उन्नति की । इसी समय हिन्दी
की दा श्रार शाखायं हाथ पाँव चलाने लगी । मुसलमानों ने खड़ी
बाली का अपनाया श्रोर साधु, महात्मा, क़ृष्णाभक्त वेष्णावों ने ब्रज
भाषा को । खड़ी बाली तो उस समय विशेष उन्नति नहा कर सको,
पर कृष्णाभक्ति नेव्रजको शीघ्र हौ उन्नति कं चरम शिखर पर
पहुँचा दिया । राजस्थानी कवियों ने भी ब्रज में लिखना शुरू
किया । डिंगल का भी खूब ज़ोर रहा, यद्यपि वह बोालीजानेवाली
भाषा से धीरे धीरे दूर पड़ने लग गई थी । इस काल कं अन्तमं
भाषा-विज्ञान की दृष्टि से राजस्थानी में कई एक परिवर्तेन हुए जो
मुख्यतया वशे-सम्बन्धी परिवर्तन थे । इस काल में गुजराती
17. 9
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