भक्तियोग | Bhaktiyog
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
275
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अश्विनी कुमार दत्त - Ashvini Kumar Datt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भक्ति क्या है ६
इतने सुल चेनके सधन दिथे है, इसलिये उसके बदखेमे सुभे
. उससे ' प्रेप रखना चाहिये” इत्यादि विचार सच्चे भक्तकै
'हृद्यमें स्थान नहीं पा सकते । संच्चे भक्तको ईश्वरे स्वा
अन्य ` किसी भी पदा्थकी थ्लिकुल इच्छा नहीं होती। जो
भक्ति भूतकाकिक उपकारो ओर भावी सदिच्छाभंपर अवलं बित
रहती है वह कभी अहैतुकी नहीं हो सकती । उसमें खार्थका
आभास रहता है! भहैतुकी भक्तिके शब्दसागरमें “बदला”
शन्दका अभाव है । एक विद्वानका कथन है “मैं चाहता हूं,
कारण कि, में चाहता हं ! तेरे सिवा अन्यकों साहना च एह-
यानना मेरा स्वभाव नहीं है।” अहैतुकी भक्तिक्रा यही तात्पर्य
है' और भक्तियोगकी यहीं पराकाछा है ।
यह तो हुई उत्कष भक्ति । इससे दीन श्रेणीकी भी भक्ति
दोती है ययपि वह भक्ति इस संज्ञाके योग्य नहीं; तोभी उच्च
भक्तिपर पहुवानेके लिये यह सीदियो$ समान सहायता करती
है। इस सोढ़ीपर चढ़ना भी बड़ा कठिन के है! लेकिन
तोमी किसीको निराश नहीं होना चाहिए | प्रथम सीदीसे
श्ारंभ करके मी अभ्यास भौर अविश्नान्त उद्योग `करनेसे उश्च
शेणीपर पहुंच सकते हैं ।
मनुष्योंकी उच्च तथा हीन श्रेणीकी शक्तियोंके निय्न लिखित
दो भेद हैं--
१ रागात्मिका अथवा अहतुकी ( सर्वोत्कष्ट)
२ बैघी--स्वाथमय अथवा गौणी ।
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