मेरी प्रिय कहानियां | Meri Priy Kahaniyan

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Meri Priy Kahaniyan by अमृता प्रीतम - Amrita Pritam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जंगली बूठी अगूरी, मेरे पडौसियों के पौथियों के पटौमियों के घर, उनके बड़े ही पुराने नौकर की बिल्कुल नई थीवी है । शुक तो नई इस थाते से हि वह अपने पति की दूसरी बीदी है, सो उसका पति 'दूहजू' हुआ । जू के सते- लव अगर 'जून' हो तो इसका पूरा मतलब निकला “दूसरी जून में पढ़े सवा आदमी, यानी दूसरे विवाह की जून में, और अयूरी क्योंकि अभी मिंदाह की पहली जून में हो है, यानी पहली विवाह की जूने में, इसलिए नई हुई । और दूसरे वह प्रम बात से भी नई है कि उसरा गीता बाएं अभी डिएने महीने हुए हैं, थे सारे महीने सिसशर भी एक सार सही बनेंगे । पांचन्छ साल हुए, प्रमानी जब अपने मालिकों से एंट्री संगर अपनी परती पत्नी की किरियां करने के लिए अपने याव गया था, सो मरे है शशि विरिया दासें दिन इस अगूरी दे दाप ने उस अगोणा लिभोद दिया था। किसी भी मई वा यहें अगोणा भें ही अपनों पस्ती की मौत पर आयुधो हें नहीं भीगा होश, चौपे दिन था फिश्या मे दिन नटाकर बदन चोएने वे बाद बट अगोा पानों से ही भीगा होता है, पर इस साधारण शो गाव भी रम्म से हिसी भर सशकी था दप उटकर जय यह झरोएए निवोइ देश है तो से बह रहा दौदा है--यस सरने डायी बे उपर ये पर्दे अपनों देटो देश हूं और अर तुमे रोते की जरूरत नहीं, वैने सुस्ासा जामसुओं है भीगा टुआ असोएा भी रुगा रिया है इसे तरह प्रभादी का दस अगुरी दे साई दूसरा दिवाए हो गया पा ।




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