अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र | Antarrashtriy Arthashastra

Antarrashtriy Arthashastra by पी॰ सी॰ श्रीवास्तव - P. C. Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ परसि देयो का श्रित विका कुण्ति हो गया । साष्ट है कि सम्प्र कौ प्रमको प्रौर हन कले हतु दान्ति विषतेधण के साध-शाष तषिक विशेष हरना भी जहरी है । यही कार है कि प्रगते पर्याय मे हमे वशिकवादियों के (विचारों का बिदेष्त किया है, क्योकि इटो क सुधार या प्रतिक्रिया शय में बाद रियो ते ग्रपने विचार प्रस्तुत किये । कुछ पुराते विचार हो प्राण भी दूमरि निरयो पर प्रभाव डाल रहे है। परीक्षा प्रत्‌ * ( १ भ्रत्य प्रथशालतकेकषेध्का विवेचन कीनि । ही 0,4.93... 1111. 13... २ प्रर ्राधिक तम्य क्या है? इनके समाधान के लिए कि बुति गादी बातो को हृष्टिगत रखना श्रावक है 1 लिए आई (6 दादा आधिफधणाओं ध0000ा1८. फाएएधिए प्प्‌ पपाद पदाना १ प्रीण अ [1६ 0486 [णा 1.111.111. 11.2/ 2 दि 2]




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