हिन्दी काव्य प्रवृति | Hindi Kavya Ki Prvrtiya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जान पे. यार |
५ होती गई स्योर्यो सार्विन्दुग नो रसनाणों
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स्वमाएँ यासमुद्ाद सुम जादि में लिखी हूं। गडिस थे ग्यः
फे पर हो देय पी ससी दियति पर फर रपदेयी सर्द
दे; द्पयदार अर आरमनिर्मरना द्वारा देय पी पगि के छपभार सी
निदधन रानन्त की इस पनि चर्मन्, यस्याम् दने फी
यात हनन
अपना भोयो श्राप दी छा)
अपना कपड़ा श्राप यमाये |
माल. घिदेशी टूर भगाये,
व्रपना चरखा शाप चलाये !
ग्ट सदा प्पना व्यापार,
घारो दिस दो मोज-पदार ।””
आर्थिक स्पतम्ब्रता की भावना की टष्टि से भी इस प्रकार की
रचनाएं ध्यान देने योग्य हूं। फिसनों की दीन दया का आभाम
भाटक को अनेक रचनाओं में मिलता है। कहीं कई तो
उनके द्र का विद चसतुन भी दिखाई देता है 0
# उदादरण के लिए कुछ पंन्दियों देग्विए न
'पशिनकं कारण सय सुख पायें, जिनका योया सव सन सायं;
दाय दाय टनके यालक नित, भूर्य फे मारे चिछायें !
काल सर्प की सी फुफकार, छुएँ भयानक चलनी ई
धरती कौ स्नानां परततं जिस्म तावा सी जलती र
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