बृहत हिंदी कोश | Brahat Hindi Koush Ac 4503
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
119 MB
कुल पष्ठ :
1796
श्रेणी :
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पं. कालिकाप्रसाद - Pt. Kalikaprasad
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मुकुन्दीलाल श्रीवास्तव - Mukundilal Srivastava
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श
~ ~ ~~ => थे जा
भग - भनार
अमदो ह ¦ -र ~प श्य दं होना; माकि | गवां - लौ” जनहा ताव अगो ताननाः दहा
कटमेनाका नौकर । स्कः -सर्दौ (दिन्) -प० माणि
करनेवाला नौकर 1-मसदन-पु० माकिश । -संचे-पु०
गठिया रोग । -यषश्टि-खी° पतली आति । ~-श्क-
प० शक्षविशेष । -रक्षक-पु० राजा महाराजा आदि बडे
आदमियोकी रक्षापर नियुक्त जन, मशै-गाद (दसा?) ।
रक्षणी, रक्षिणी -सी० केहेकी जालीका बनी हुआ
बम, भिरह, बख्तर; पोक्षाकं । -रक्षा-स्री शरीरकी
रक्षा 1 दसं -पु० पत्ती, फल आदिक कुटकर निचोडा
हुआ रस । -रागश- पृण सुगंभित केष यां उबटनः; इनका
केषनं । -राञ्ज-पु० भंग देशका राजा; कर्णं या कोभ-
पदे । -र्ह -पु० बालः ऊन । -ङेष-पु० दै० “जय
राग ) -छोडय -पु० वृविदोष। -विकर-बि०
विकलांग; मूर्छित ¦ -विकृति-स्त्री देहमें कोई विकार
होना; भिरमीकी भीमारौ । -विक्षेप-पु० बोलने; गाने
आदिते हाथ वैर, सिर भादि हिराना; नृत्य । -विद्या-
श्री कानके साधनभून व्यकिरण आद्रि क्षाल्य; प्रइन
कारूमे अंर्गोकी चेष्टा या अगेकि चि देखकर श्ुमाश्चुम
कहनेकी विया । -विश्चम -पु० अगज्ंति, एक रोग ।
-बैकृत-पु० सकेत या मुखमृद्रा हारा आंतरिक मार्वोका
प्रकाश । -हुद्धि-स्त्री स्नानादि ढारा झरीर की शुद्धि ।
-शैथिल्य-पु० शरीरका ढीलापन । -झोष- पु० सूखा
या सुखटी नामफी बीमारी । -खंग-पु० सभोग,; शरीर-
मग । -संरिनी-वरि° स्त्री अंग-संग करसेवाली 1-संगी
- (गिन) - त्रि” भंग-तग करमेवाला । -संशारन -पु°
हाथ-पाथ आदि हिननेकी क्रिया! -संि-ली० दे
मध्यग । ~ संस्कारं -पु० देहवो सवारना, मजाना, बनाव-
मिगार । -संहति-खी° अगसमष्टि; अर्गोकी नाटः;
छीटाई-बडाईका मेल, गठन | -सख्य-पु० प्रगार मैत्री ।
-सिहरी-स्त्री हि] जड़ेया बुस्वारकें पहलेकी केंपकॉपी :
जूरी । -सेवक-पु० निजी सेवा-टहल करनेवाला नौकर ।
-सौष्व -पृ० अंगोकौ बनाबरकी सुंदरता । -स्पशं -
पु० झरीरका रपर्श- अशौचयुक्त न्यक्तिका दूसरोंके छूने
योग्य हौ जाना) -हानि-स्वी० उगगविशेषकी हानि:
विकृनिः; मुख्य ककि सहायक कमको न करनाया दीक
तरे न करना । हार -पु० अगविक्षेप; नृत्य । -हारि-
सी° रग-भूमि । पुण दे° अंगहार' । -हीन -वि° अंग
विशेष रहित विकलांग; उपकरण-रहित (पूजा इ०) । पु०
अनेय, कामदेव । मयुर - करना - स्वीकार करना । इना -
कमम खाना ! -टटना -अगडाईं आना; ज्वरके पने देह
दूना (१) । -धघरना- पहनना; धारण करना । (फूले)
-न समाना- अत्यंत प्रसन्न होना ।-मोबना -रुज्जासे
देह सिकोरना। अंगढाई लेना ।-खगनां-किपटना।आदार-
का पचकर देहकी पुष्टि करना; परचना । -कछगाना-
लिपटाना; परचाना: विवाहमें देना 1
-पुर अंगोंगा ।
अंगक-पु० (सं०] अंगः शरीर ।
स्त्री दे० 'अंगजाः ।
अंगद-संगङड ~ वि० टरा-कृराः बचा-सुचा । पृ० हयक
मामन ।
टूटना । मु०-तोचना - भेंगडाई लेते समय किसीके कवेपर
हाथ रखकर अपनी देहका भार देना (जो आमतौरपर
ममहूस समझा जाता हैं? कुछ काम न करना !
डैँगढाना-भ० घि? अंगडाई लेना ।
अंगढ़-पुर सिं०] दे० 'अंगन' ।
अमति ~-पु० [सं०) मम: अभिहीत्र: नहा; “विष्णु+ सवारी;
यान ।
अंगद-पु० [सं०) बाजूंद, बविजायठ बालिका बेटा;
छक्ष्मणका एक पुत्र: दुर्योधनके पक्षका ण्क योद्धा ।
अंगदीया-खी० [सं०] लक्ष्मणकें पुत्र भंगदकों मिले राज्य-
(कारुपथ)की राजधानी 1
अंगन~-पु० [मे०] उ्हलनेकां स्थान; ऑगन, चौक; टहलना;
यान, सबारी ।
अंगना-स्त्री [मं०] सुद्र अर्गोवाली सी; शौ; करप्रिया
स्त्री; उन्तर दिश्चाके दस्तीकी नायी । -गण - पुर खियेका
समूह । -जन -पु० ललवरगं । -ग्रिय - पु० दीक वृक्ष ।
गना -पु० दे? “आँगन ।
अँगनाइई*- सी भीतर या जनानखानेका ऑँगन
अँगमैया† - खी 2० (ओंगन' ।
खगर्थीक-पु० [५1०] दाद ।
शगरला-पु० एक रगा बढददार मर्दना पहनावा, भगा,
चपकान !
अँगरा। -पु० अगार; बैठोंके पैरमें दर्द होनेका एक रोग!
भगारना०-अ० क्रि० दे० अगडाना'
सँगरी*-स्त्री० जिरह, बस्तर: गोदकें चमड़ेका दस्ताना 1
अँगरेज-पु० इंग्लैड देशका रदनेवाला, 'इग्लिशमैन' ।
ंगरेजियत-सखी° अगरेजपन, भगरेनी चाल-ढार ।
अगरेजी - वि० अगरेज-सबधी; अगरेजका । सनी अगरेज-
की भाषा 1
अंगलेट-पु० शरीरका गठन या ढॉचा ।
अँगवना- सण क्रि० अगीकभर करना; सहना-बल
कुक्िमि अमि अगवनिहारे, त रतिनाथ सुमन क्षर मारे'-
रामा० । अपने सिर पर लेना ।
अंगवारा' -पु० खेतकी जोनाईमे पारस्परिक सददायना,
गॉविके छोटे हिस्सेका मालिक 1
अंगांगिभाव पु सि०] अग अर अगीका सबंध; परस्पर
अग ओर देद्, गौण और मुख्य, उपकारक और उपकार्यका
सेध ।
अंगा -पु* अगरला ।
अंगाकडढ़ी -खी वादी, लिट्टी (जो अगारोपर सेककर
बनायी जाती हैं !
अंगाधिष, अंगधीह- पुण [मं०] र्का स्वामी अहः
राजा कर्ण 1
अंगार -पु° [०] अगारा, दहकता हुआ कोयला या
काषटखंड; कोयला; मंगर मह; हितावली नामका पौषाएक
राजा; लाल रंग । वि० लान । तूरारी- (रिन्) - पु ०विक्रीके
लिए कोयला तैयार करनेवाला । -कुछक -पु० हितावली
नामक पौधा । -धानिका,- शानी;- पाती,” शकटी
स्त्री अँगीठी । “-परिपाचित- वि अंगारेपर पकाया
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