समुद्रिकशास्त्रम् | Samudrikshastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषयानुकमणिका । विषयाः परषाकाः प्रसंगस हस्तरेखाओंका कहना दथेटी- म पूण तीन रेखा दोनेका फक मच्छ आदिकी सी रेखा होनेका फल ख्ियोंमें श्रेष्ठ होना -.. १४९ भर्दुघ्नीोरेखासेठे कछुबेकी रेखातक वर्णन १९५६० भ्वजाकी रखास ढे ङंटकी रेखाओंतकका फल, स्त्रियों के उगूठा अंगछियोंका झुभाउशुभ फल झुभनखोंका वर्णन अझुभ नखोंसे घन ५५५१ हीन ओर व्यभिचारिणीं होन १५२ पठे शुभाऽडुभ फर ६५५२ घटकं शगुभाञ्टुभ लक्षण खियोंके कण्ठकं छक्षण ५ शश प्रीवाके उभाऽग्रुभ रक्षण रोडी ओर हनुके गुभारगुभ लक्षण ५५५ सुन्दरकपोलोकावणन सुखकं जुभलक्षण १५६ मुग्बके अज्ुभलक्षण आ्ठोकेडुभलक्षण १५७ ओष्ठकि टुभाऽ्यभ रक्षण १५८ खियोकेदातिकडुभाऽगरुभ लक्षणांकाफल १५५९ दांतोंके अशुभ लक्षणीका फछ जीभके शुभ ढक्षण,. . १६० जीभकं अगुभलश्चण तान्दुके मुभाऽगुभ लक्षण १६१ ताठुके अगुभलक्षण पेटीका यामाऽ्युभ होना ्हसनेका याभाऽ्याभ लक्षण नासि- काके झुभाइशुभ लक्षणोंका फल १६२ छीकका सभायाम्‌ निरूपण अम नत्रोका वणन १९६ नेतके राभाऽदाभ क्ष्णोका फक १६४ नेत्रोके अदरभटश्चण काणौ म्वीका वर्णन १६५, वाफनोंके जभाऽगुभम रक्षण ख्त्रियोंके रोनेका निरूपण भ्रुकुटियोंके झुभाउ्युभ ठक्ष्णो(का फ क --. १६६ कार्नाकं सुभाऽयम उक्षणो फर १६७५ चखियेकरि चन्द्रसमान ठलाटका फर उखाटके रुभाऽगुभ क्षण मंँगके शुभ लक्षण १६८ (७) विषयाः ृष्रकाः शिरकेभाऽज॒भटक्षणपरोकेग॒भलक्षण १६९ केशोके अञभलक्षण ... १७० हनि सामुद्धिकानुक्रमाभिकायां सस्थाना- चिकारश्तुर्थ: ॥ ४ || व्यंजनके लक्षण कथन और व्यंजन संज्ञा मशकादिका ज्ञान मशकादिके चिडसे रानी होना ,... ,. १५१ बोये कपोते वये कुचतक मश्धका चह द्ोनेका फल व १७२ योनि और नाक ओर नाककी ठफनी में ओर नाभिके नीचे मराकादि चिह- होनेका फ 1 ,.. १७३ टकनेभे ओर बय हाथमे मरकादि चिह्न होनेका क मराकादि उुभाऽयुभ होना खियोंकी प्रकृतिके भेद तिनके फर चिकने नखरोम त्वचा होनेका फर कोमल त्वचा ओर कम- ख्केसे धरो वालीका ओर वेड नेत्रवाटीका कणन . ,.. १५५ निद्रावतीका वणन पित्तप्रकृतिबारी १७४ आदिका वणन १५६ वातप्रक्रृतिवारीका व्भन १५७ स्त्प्रद्खनेवालीस ठ देवघ्रङ्रतिवाली तक वर्णन $ ... १५८ वियाधरस्वभाववाङीसि ले राक्षसी स्वभाववाखीतक वर्णन १७९ भयकरीसटेखरकस्बभाव्रवाटीतकव्णन.१८२ कुटिल गामिनीका वर्णन और सिंहप्र- क्तिवालीका च्णन मंड्क कुश्चिवालीसे ले म्वास्वामिनी तक घचणन १८१ रानी तथा आठ पुत्र जननेवालीस ठ स्म भाग्य वाीतक वणन . - १८२ रक्त नेत्रादिवाटीका वर्णन १८३ गोखमुख गौलङ्कचवाली भादिकः बणेन पश्चिन्यादि चार भेदका कथन ... १८४




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