नाग और शबनम | Naag Aur Shabnam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.51 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जन्म-अम्माग्तर से भूखी-प्यासी भूख का एइलास था, जो बचपन से जवौँगी
तक उसके साथ चला आया था 1 चूँकि उसका बदन दूसरों से डुगना
रूपया और बड़ा था, इसलिए बदद दूसरों के सुकाबले में दुगुनी खुराक
चाहता था। दानी को जिन्दगी भर एक ही अरमान रहा--कोई उसे
पेड भर कर खाना दे दे और फिर चाहे उससे चौयीस पंटे मद्यक्कत
कराये । मगर दानी का यइ ख्वाव चार्क रोड के ईरानी रेस्तरों में आके
ही पूरा हुआ । ईरानी रेस्तरां का मालिक उससे चार आदमितों के
बराबर मशक्कत कराता था, मगर पेट भर के खाना देता था और बीस
रुपये तनख्वाद देता या, जिससे दानी ठसे पीता था. और पेट भर के,
. खाना खाके शौर ढर्य पीके बह छुटपाद पर सो जाता था और अब ससे
दौलत, खियासत और दोइरत और औरत वगैरइ-वगैरइ किसी चीज की
परवा मे थी । अगर चहे दुनिया का खुशाकिस्मतें तरीन जिन्दा इनसान था|
जिस रात सरिया को उसने गुष्डों के दवार्थो से बचाया, उस समय
भी उसके दोस्त अली अकबर ने उसे बहुत मना किया था । तीन-चार
गुण्डे मिल के सरिया को एक टैक्सी में घुसने की कोशिश कर रहे थे, .
जो चर्च के होहे के जेगढे से बार फुटपाथ के किनारे खड़ी थी। चौक
का सिपाही ऐसे मौके पर कहीं गश्त लगाने चल्या गया था, जैसा कि ऐसे
मौके पर अक्सर होता है। सरिया खौफ और ददशत से चिल्ला रददी थी
_ और मदद के छिए पुकार रही थी और अकबर ने दानी को मत
समझाया या, बम्बई दै, ऐसे सौकों पर यदोँ कोई किसी की मदद.
“नहीं करता । ऐसे मौके पर सब ब्येग कान ल्पेट कर सो जाते हैं । तुम
भी सो जाओ ! दिमाकत मत करो ।” मगर दानी अपने कानों में उंगलियों
« देने के बावजूद सरिया की चीखें की दाद न ला सका और अपनी
'. जंग से उ् कर टैक्सी की जानिव मांगा ! गुण्डों के करीब लाके उसमे
+ समसे कोई घालनीन सरल 1 रत सिरीज मजे पलट
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