कबीर | Kabiir
श्रेणी : पत्रकारिता / Journalism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)करीर का युग डे
परदे की प्रथा मुसलमानों के ही सम्पकं से श्राई । उच्च श्रेणी
के धनीमानी मुसलमानों की द्यां परद् में चलती थीं । उसकी
दूखा-दखी यहाँ भी चल पड़ी । परन्तु जो प्रांत मुसलमानों के
संपक में नहीं आझाये, वे इस प्रथा से मुक्त थे ।
शासकों की भाषा होने के कारण अरवबी-फारसी को महत्व
मिला शोर इसी में शिक्षा दी जाने लगी । केवल केन्द्रों में ( जैसे
काशी ) संस्कृत का अध्ययन चलता रहा। कला के क्षेत्र में
अवनति रही ।
इस्लाम धमं श्र राजा का संबंध जुड़ गया था, 'झतः यह
स्वाभाविक था कि इसका प्रचार शॉीघ्रता से होता । हिंदी प्रदेश
में इस समय पाँच-छः घार्मिक घाराएँ चल रही थीं--
१, मुसलमानी एकेश्वरवादी घारा जिसे शासकों से सहारा
मिल रहा था।
२. सूफी प्रेमानुयायी धारा ।
३. हठयोग की धाग |
४. सहजयागी नि्गणमत की ज्ञानश्रयी धारा जिसमें
प्रम का भी सहयोग था ।
४. वेष्णव भक्ति-घारा जिसमें भक्तिका प्रधान स्थान था।
इसके कई रूप विकसित हुए--विष्णणुभक्ति, रामभक्ति, कृष्ण-
भक्ति, राघाभक्ति ।
६. कुच विशेष भगो मे शेव श्र शाक्तमत भी चल. रहे
थे । इनमे से शाक्त तो बहुत कृं बोद्ध तंत्राचारों से भ्रष्ट हो
चुका था।
इन पाचों धारश्रों ने एक दूसरे को प्रभावित किया । ये धाराएँ
बराबर समानान्तर चलती रीं रौर बहुत दिनों तक चलीं। इस
काल में जिन विचारधायश्नों का प्रकाशन साहित्य में हुआ,
डी
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