कबीर | Kabiir

Kabiir by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

Add Infomation AboutRamratan Bhatnagar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
करीर का युग डे परदे की प्रथा मुसलमानों के ही सम्पकं से श्राई । उच्च श्रेणी के धनीमानी मुसलमानों की द्यां परद्‌ में चलती थीं । उसकी दूखा-दखी यहाँ भी चल पड़ी । परन्तु जो प्रांत मुसलमानों के संपक में नहीं आझाये, वे इस प्रथा से मुक्त थे । शासकों की भाषा होने के कारण अरवबी-फारसी को महत्व मिला शोर इसी में शिक्षा दी जाने लगी । केवल केन्द्रों में ( जैसे काशी ) संस्कृत का अध्ययन चलता रहा। कला के क्षेत्र में अवनति रही । इस्लाम धमं श्र राजा का संबंध जुड़ गया था, 'झतः यह स्वाभाविक था कि इसका प्रचार शॉीघ्रता से होता । हिंदी प्रदेश में इस समय पाँच-छः घार्मिक घाराएँ चल रही थीं-- १, मुसलमानी एकेश्वरवादी घारा जिसे शासकों से सहारा मिल रहा था। २. सूफी प्रेमानुयायी धारा । ३. हठयोग की धाग | ४. सहजयागी नि्गणमत की ज्ञानश्रयी धारा जिसमें प्रम का भी सहयोग था । ४. वेष्णव भक्ति-घारा जिसमें भक्तिका प्रधान स्थान था। इसके कई रूप विकसित हुए--विष्णणुभक्ति, रामभक्ति, कृष्ण- भक्ति, राघाभक्ति । ६. कुच विशेष भगो मे शेव श्र शाक्तमत भी चल. रहे थे । इनमे से शाक्त तो बहुत कृं बोद्ध तंत्राचारों से भ्रष्ट हो चुका था। इन पाचों धारश्रों ने एक दूसरे को प्रभावित किया । ये धाराएँ बराबर समानान्तर चलती रीं रौर बहुत दिनों तक चलीं। इस काल में जिन विचारधायश्नों का प्रकाशन साहित्य में हुआ, डी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now