तुलसीदास की भाषा | Tulsi Das Ki Bhasha

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Tulsi Das Ki Bhasha by डॉ. दीनदयालु गुप्त - Dr. Deendayalu Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) वलखीदाछ जी का दोनों प्रकारकीमात्रार््रो पर श्चधिक्रार था च्रौर जायसी काशक द प्रकारकीमापापर। एद्ीदंणकी मापा की निपुणता उनकी श्रनूटी थी ।”न- स्पष्ट दै कि शुङ्ग जी का उक्त प्रयत संचिम्र एव त्रपया दी है) मापा-सम्बन्धी पूरं विवेचन इसमे नदीं हो पाया, विवेचन की एक प्रेरणात्मक दृष्टि अवश्य स्पष्ट हुई है । ५. तुलसीदास झौर उनकी कविता-इख अन्य के अन्तर्गत श्री रामनरेश त्रिपाठी ते तुलखीदास जी के काव्य के श्रन्य पर्ोके साथ-साय उनकी भाषा के विषय में भी यन्न-तत्र स्फुद रूप में श्रपना विवेचन प्रस्तुत क्रिया दै) इसमे कोई चन्देह नदी कि उक्त विवेचन के पीछे त्रिपाठी जी के किसी विशेष शाखरीय अथवा वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पता उतना नहीं चलता, जितना कई अन्य श्रवास्तर प्रसगों पर बल देने की प्रदृत्ति का; उदादरणाधथ; श्रपनी इस घारणा को प्रमाणित करने कौ उनकी बलवती प्रेरणा करि वली का जन्म-स्थान सोरों दी था । कुछ भी हो, श्रपनी सारी न्युनताश्रों के साथ उन्न, वली की मापा के कलापक्ष तथा भाषरावन्नानिक पत्ते के कतिपय प्रचलित एवं व्यापक श्रगों के श्राधार पर तुलसी द्वारा ञ्यवहृत मुहावरों, क्यवतो श्र श्रलं कारो ्रादि का स्फुट संकलन करते हुए) तथा कुछ मान्तीय भाषाओं और बुद्धं इिन्दी-प्रदेश की वोलियो के कतिपय शब्द-रूपों को दृढ निकालने का उद्योग करते हुए, जो सामग्री इमारे समझ रखी है, उसका प्रस्तुत अध्ययन में उपयोग किया गया दै ] वस्तुतः उनके प्रयत्न मे यदि ख्व से श्रधिक खटकने वाली वात कोई है तो वदद यदद है कि उनकी दृष्टि प्रायः श्रन्तरंग विर्लेषणमें न पहुँच कर वहिरंग श्राधार पर दी विशेष केन्द्रित रदी | यही कारण है कि विविध रूपों के सकलन में वे श्पने परिश्रम द्वारा जितनी सफलता -प्राप्त कर सके हैं उतनी उन संकलित रूपों को शास्त्रीय व्याख्या एवं मूल्यांकन करने में नहीं । कद्दी-वह्टीं तो उनके निर्णय श्रौर निष्कर्ष बड़े ही ! इल्के स्तर पर उतर श्राए हैं। इन्ही बातों के फलस्वरूप उनकी मान्यताश्रों मे श्रपेक्तित गांभीयं का श्रभाव रहा श्र उनका श्रम उपयोगी होते हुए भी विशेष विश्वसनीय नहीं सिद्ध दो सका । ६. इंडियन ऐंटीक्वेरी छोर इलाहावाद युनिवर्सिटी स्टडीज से प्रकाशित निरंध-र° बावूराम सक्सेना ने श्रपने इन कतिपय निवंधों मे, जो कमशः रामायण म संज्ञारुप'र, “रामायण में क्रिया-पदर 5 , श्र रामायण मेँ फारसी से उधार लिए, हुए, पा रामचंद्र शुकल-जायसी-ग्रन्थावली की भूमिका, इप्ठ २०७-३०६ (पंचम संस्करण) १. उदाहरणाथ ष्टा तो सद्‌ा खर कफो श्रसवार तिहारोद्‌ नाम गयंद्‌ चढ़ायो” से झाप हुए खर को प्रस्वारः के श्प्राधार पर यद कहना कि सोर मे श्राजकल भी लके गधे पर चढ़ते है, श्रतः तुलसी सोरों के निवासी थे, उपहासासपट हे 1 २. इंडियन ऐटीस्वेरी खंड ४९, 9६२३, एप्ठ ७१-७६ रे. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी स्टडीज़ खंड २, १४२६, झष्ट र०७-२३८




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