विज्ञान के पथ पर | Vigyan Ke Path Par

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : विज्ञान के पथ पर  - Vigyan Ke Path Par

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पुरुषोत्तमदास स्वामी - Purushottamdas Swami

Add Infomation AboutPurushottamdas Swami

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
विज्ञान के पथ पर खेद प्रकाश किया कि विश्व की उतत्ति के समय उस की सम्मति नहीं ली. गई । कोपरनिकस ने अपनी पुस्तक 09 रिश्ए्णाप्मापएपड 0एछाप्रप (गल्ञपपरफ भे यद्‌ लिखा है फि सूय के चारो श्चोरप्रथ्यी यश्छन्य अह घूमते हैं । पर यदद पुस्तक सन्‌ १५४३ मे प्रका भित हुदै जय कोपर निकुख सत्यु शव्या ण्र था । कददों जावा हैं वि. सत्तरद साल तक उसने इस पुस्तक का प्रकाशन राक रखा एक घुद्धिमान आदमी की तरद्‌ उसने श्रपनी यह पुस्तक पोप फो समर्पित कौ । चूकरि इस पुस्तक को कोापरनिक्स मरने से प्ले फेयल हाथ में वी ले सका था इसलिण यद्‌ यद्‌ मालूम न कर सका कि उस में पक भूमिका जोड़ दी गई है जिसमें पाठकों को सावधान किया गया है कि पुम्तक में जो छुछ लिस्श गया है पद कपोलकल्पित है । कोपरनिफस का प्रिय शिध्य प्रनो भा । बद चाहता थ। कि कोपरनिक्स के सिद्धातों का खूब प्रचार हो जिससे उसके शर्द्व की श्रात्मा फो शाति मिले । इम लिए उसने सम से यह कदा कि प्रथ्वी सूये फे चायं ओर घुमती है और टॉस्सी ने जो इुछ िग्या हैं बदद गलत है । इस से लोग नाराज हो उठे । रोम से वेनिस को यह समाचार भेजा गया कि जनों पोय के सुपुरे फर दिया जाय जिससे उस पर सुक दमा चलायां जा स्के । उस यक्त बेनिस सोम से यिलकुल स्वतन्द्र धा फिर मी स्मके शासको ने उसे रोम मेज दिया यष वेनिस मे लिण्ष्क लला की याव है । ननो पर क




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now