विज्ञान के पथ पर | Vigyan Ke Path Par

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Vigyan Ke Path Par by पुरुषोत्तमदास स्वामी - Purushottamdas Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विज्ञान के पथ पर खेद प्रकाश किया कि विश्व की उतत्ति के समय उस की सम्मति नहीं ली. गई । कोपरनिकस ने अपनी पुस्तक 09 रिश्ए्णाप्मापएपड 0एछाप्रप (गल्ञपपरफ भे यद्‌ लिखा है फि सूय के चारो श्चोरप्रथ्यी यश्छन्य अह घूमते हैं । पर यदद पुस्तक सन्‌ १५४३ मे प्रका भित हुदै जय कोपर निकुख सत्यु शव्या ण्र था । कददों जावा हैं वि. सत्तरद साल तक उसने इस पुस्तक का प्रकाशन राक रखा एक घुद्धिमान आदमी की तरद्‌ उसने श्रपनी यह पुस्तक पोप फो समर्पित कौ । चूकरि इस पुस्तक को कोापरनिक्स मरने से प्ले फेयल हाथ में वी ले सका था इसलिण यद्‌ यद्‌ मालूम न कर सका कि उस में पक भूमिका जोड़ दी गई है जिसमें पाठकों को सावधान किया गया है कि पुम्तक में जो छुछ लिस्श गया है पद कपोलकल्पित है । कोपरनिफस का प्रिय शिध्य प्रनो भा । बद चाहता थ। कि कोपरनिक्स के सिद्धातों का खूब प्रचार हो जिससे उसके शर्द्व की श्रात्मा फो शाति मिले । इम लिए उसने सम से यह कदा कि प्रथ्वी सूये फे चायं ओर घुमती है और टॉस्सी ने जो इुछ िग्या हैं बदद गलत है । इस से लोग नाराज हो उठे । रोम से वेनिस को यह समाचार भेजा गया कि जनों पोय के सुपुरे फर दिया जाय जिससे उस पर सुक दमा चलायां जा स्के । उस यक्त बेनिस सोम से यिलकुल स्वतन्द्र धा फिर मी स्मके शासको ने उसे रोम मेज दिया यष वेनिस मे लिण्ष्क लला की याव है । ननो पर क




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