आधुनिक संस्कृत - नाटक भाग - 1 | Adhunik Sanskrit Natak Bhag-1

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Adhunik Sanskrit Natak Bhag-1 by रामजी उपाध्याय - Ramji Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १ रपगोत्वामो का नाटच-साहित्य सो्ह्वी शती ङे कवियो मे स्पभोस्वामो अद्वितीय कहे जा सक्ते है। कूप गोस्वामी की चारुपरिंतावली का थुग १४५ वी और १६ वी ई० शती दै। इनका आनुवशिक परिचय जीवंगोस्वामो ने सनातन गोस्वामी द्वारा प्रणीत लु भागवत को स्धुतोपिणी व्यास्पा में इस प्रकार दिया है--कर्नाटक के राजा सर्वज्ञ जगद्गुरु भारद्ाज गोत्र के थे । इनके पुत्र राजा अनिष्द्ध की दो पत्नियों से रुपेस्वर ओर हरिहर राजकुमार हुए। हरिहर दुष्ट स्वभाव को था । उसने सपेश्वर को शाज्य से भगा दिया । श्पेश्यर का पुत्र पद्मनाभ गङ्गाके तदपर नवहूट्ट प्राम में शुप्रतिप्ठित हुआ । उसके पाँच पुत्री मे सबसे छोटा सुवुन्द नवहूट्ट प्राम छोड़कर फतेहा- बाद में जा बसा । सुदुद वे पुभ श्रीडुमार थे, जिनके तीन पु्रो--असर, सन्तोप और वल्सम को चैतन्य मे सनातन, रूप ओर अनुषम नाम से दीक्षित किया । अमर भौर सन्तोप गौडशाज टूतेनशाद्‌ मे दारा उच्च राजकीय पदो पर नियुक्ते ये भौर रामकेलि मामक ग्राम म प्रतिष्ठित ये। दीक्षा के पश्चात्‌ रूप प्राय गोकुल भे रहे । रूप्गोस्वामी महान्‌ रेखक ये । उनके लिते हृए १७ अन्यो के माम जीवगोष्वामी अनुसार दै-(१) हस-रन्देण (२) उद्धव-सन्देश, (°) अष्टादशा लीसा छन्द (४) उत्त+ तिका पल्तरी (५) गोमिन्द-तरिदावली (९) प्रेमेन्दुसागर (७) विदरषमाथव (€) दानकेलि-पोमृदी (€) सलितमापव (१०) मक्तिरसरामृत पतिषु (११) उज्ज्यले-नीतमणि (१२) मधुरामहिमा ( २३) नाटक्वद्भिका ( १४) पयावत्ती (१५) सकषिप्त मागवनामृत (१६) आनन्द-महोदपि (१५) मुदन्द मुक्तावली । उपयुक्त प्रन्योमे सेदो विदग्धमाधव मोर ललितमाधव रुपक और दानकेलि- कौमुदी माणिका कौटिका उपरूपष टै ।+ कवि का जन्तिम प्रप उत्कलिफामजयी मिलता है जिसरी रचना १५५० ई० मे हुई ।* रुपगोस्रामी के रुपप और उपहपत श्वी शती वै पूर्वांध से प्रणीत हुए । विदग्धमाधव विदग्पमाधव नाटक कौ रचना मौदुल म भि° म {५८६ अर्यात्‌ १४-२ ई° में हुई, जमा इस प्रत्य की अधीलिसित पुष्पिया से प्रमाणित होता है-- १ गते मनुते घाव चद्रस्यर शमवते । नन्दीस्वरे निवमतां मासिकेय विमिता ॥ माणिका कौ पुप्पिारे २ सद्रारवमुवने शे पौषे यौदुक्यातिना । इयमुस लिवापूर्व-वल्लरी निमिता सया 11 प्रयवी पुष्पिदा रे ।




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