संत - साहित्य | Sant Sahitya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
303
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ६ |
कोमल ममेस्थल है ! नारी-हृदय कितना अल्हड़, कितना विश्वासी
होता ह ! नारी सदेव अपनी हार ही देखती है भौर इसीसे उसका
हृदय सदेव कोमल तथा करुण-प्रण होता हं । नारी को सदा
अपनी पराजय का ही संबल है ! वह विक जाना जानती है--गाहक
उस बिके हुए सौदे को झपने घर ले जाय या कूड़े में फेंक दे।
चह श्पना हृदय फला देती है, वह् अपना प्राण विद्धा देती है ;
“अतिथि? भले दी उस बिल हुए हृदय की छोर एक दृष्टि भी न
डाले--उसपर चलने की तो बात ही क्या है !
शकुन्तला के हृदय मे एक भावी शंका उत्पन्न करके कवि नें
पाठकों के हृद्य पर विषाद् का एक कुहरा फैला दिया है । इस कुहरे
कं उस पार प्राणेश्वर का देश हे ्ौर पता नदी कभी उसके शीश-
ल में पहुँचना होगा या नहीं । और, सबसे बड़ी कसक तो यह
दं कि पहुंच भी जाओ तो वहः पहचान सकेगा या नहीं ; अंगी
कार करेगा या नहीं ! देवता पर चढ़ाया हुआ पुष्प अपना निवाणु
दवता के चरणों से अतिरिक्त कहाँ पा सकेगा ? सवेस्व समपंण के
अनन्तर झपनी आराधना की स्वीकति-अस्वीकृति में ही साधक को
एक हल्को-सी शंका हो जाय--औओर शतिस्तेहः खलु पापशंकीः--
प्रमी सदा अनिष्ट की आशंका किया करता है-ऐसी झाशंका
बनी रहने के कारण प्रेमी का हृदय जब दहल उठे, तो उस अल्हड
कन्या का कया दोष ? प्रेममे बिधे हुए हृदय को लोक-परलोक
कौ परवा करने का समय ही कहाँ है-अवकाश ही कहाँ है?
रङ्कन्तला अपन प्राणः के ध्यान में डूबी हुई थी-उस समय
ठुवासा क आन न झाने की सुध ही उसे कहाँ थी ? वह उस समय
यदि अपने हृदय पर पत्थर सरकाकर इस कोधी अतिथि का स्वागत
करने उठती, तो हम उसकी तन्मयता पर ढेसे विश्वास करते ?
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