विज्ञान और आविष्कार | Vigyan Aur Avishkar  

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Vigyan Aur Avishkar   by सुखसम्पतिरायभंडारी -Sukhasampatiraybhandari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ ५४) ससार में फ़िसी चान को सिद्ध करने के लिये यह धमाण नही माने जाते कि श्रमुक श्सुर महात्मान तथा वडे चिन्नानीने ग्रह यात कदी है, अतप्प्व प्रमाणभूत है । चिना सिसी प्रकार की जाच किये, इसे मान लेना चाहिये । इसमें ने परीक्षा्ों पर परीक्षा करने पर जब उसकी सत्यता सिद्ध हाती हैं, तय ही चहद मानी जाती है | वैज्ञानिक कार्य पिना किसी लाग लपेट के खुले तौर से चलाया जाना चाहिये । इसमें यह देखने की श्रायश्यकता नही कि श्रसुक श्रम्नुक वात झे विपय पर हमारे पूर्यांचायों का यया मत है इसमें ते हर यात को कसौटी पर चद्धाफर उसकी यासकौ से परीत्ता करनी हानी हं श्रौर वाद में सच भठ का निर्णय किया जाता है । महाशय फेरेटे ने इस प्रकार की जाँच कर फिसी पदार्थ का निगय करनेचानने चन्ना निंक के लक्षण इस प्रद्ार कहे हैं । ५ चैक्ञानिक फो दरष्टक की वात जस्र खुनना चाहिये पर मिना जाच पडताल किये कोई वान मानना न चाहिये । उसको गादरी तडक भडकर पर मोहित न हा जाना चाहिये, पर उस पदार्थं के श्रान्तरिफ स्वरूप क! भी पता लयाना चाहिये । चैंज्ञा- निक का किसी सासमत ( 3८०0 ) का अनुयायी न हाना चाहिये । सिद्धान्तों के निश्चित करने में डसके गुर की श्राव- भयरुता न समभ श्रपनी स्पत की जांच श्रौ निरीक्षण से श्रपने सिद्धान्त निशित करना चाहिये । सत्य उसझे जीवन का खास तत्य दाना चाहिये । यदि इन उद्देशों को सामने रख चह फायं करेगा ता प्ररुति माता के मन्दिर में प्रचिप्ठ हमे की चद्द झाशा रख सऊता है । चक्ञानिक सत्य प्राथना करने से तथा उपवासादि करने से नहीं ज्ञाना जा सकता । इसके लिये शान्तिपूर्वक परीक्षण




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