जैन - शासन का धर्म | Jain Shasan Ka Dharm
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घम धर उसकी श्ायश्यक्षता ११
मे चा, दम दष्द घवराने से काप नहीं लेगा। यदि
मस्य, मयम श्र्दिमा श्रालि द माय जीयन द्धो श्रत द्रा जाय, तौ
श्रपन सीदिक उत्तरदाधित्वपूर्ण काय वरने में कोई याघा दया डरती
यातनहीं द। 'पाप वैधानिक धम के डज्वज धका में श्पने की तथा
पन क्तंध्यों को दरन का प्रयन वीडिए । इससे शर्प तप्रेयक पीमने
ध्यतात होगा वया मनुत्य चीयन छी साथ”ता होगी ।
सौनम उद 7 चपने भिदो कतो घम क पिप्य म का --
ध दरयेशर निरपयै धम्म श्राद्विकदकास भज्य करवाख् परिवामान^
कलनाण' --मिचुधा, हुम घादिक्दयाणं, सध्यक त्याग दथा रत में
कह्यागवाल धम का उपदेश दो । यादार्य सुगम 'प्रामानुशासा में
लिगत है ५ि- घमसुख का बारण है। रयः श्रण्ने बारप का विनाणफक
सी दाता । 'पतण्द दाना के दिनाश के भय से सुई पर्म स विमुख
नहीं रोना 'घाहिए। *
इसमें यदद यात प्रकर दोतों है कि विर्पमें रक्तषपाव सरणुत्त, रून्ञद
लि उत्पातों का उत्तददाधिय धर्मे पर नहीं है धम को शुदा धारण करने
बाल घमामास का ही यदद वलकमय कारनामा दै। झअपम या पाप से
उतना '्दिति धथया विनाश नहं होता, जिठना धम छा दुम्म दान
चाल रोदेन अथवा सिद्धातों में होता दे । ब्याघ को श्रे सोम्ये
ध्यांघ के द्वार जीवन श्चपिक सकटापन वनता ह्}
लाई प्पेप्ररा न टीक कहां दे कि ' वि य में शान्ति तथा मापवों के
भरति सदूभारना का कारण घम दै; जा पणा सथा शप्या यार को दलेजित
करता द, उसे राध्दरा घम मल दी कहा ताय किंतु भाव की दृष्टि से यदद
पूतया मिष्या दं । *° ना० सगवानदास का कथन “सन्तन श्रीर्
१ मद्दायग्य विनय पिटक
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