संस्मरण और आत्मकथाएँ | Sansmaran Aur Aatmakathaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जिदवकवि रयीन्धनाथं ७
असर कविं रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बचपन को
आत्मकथा
पने जन्म लिया थ। पुराने कलकत्ते मं । शहर भे उन दिनों छकडे छड-छड
करते हुए धूल उड़ाते दौड़ा करते भौर रस्सीवाले चानुक वोड़ों की हड़ी
निकली पीठ पर' सड़ासड़ पड़ा करतें । न ट्राम थी, न बस और न मोटर-
गाडी । उन दिनों कामकाज की एसी दम एला देनेवाली ठेवमटेल महीं धी ।
इतमीनान से दिन कटा करते थे । बाबू लोग तम्बाकू का कश खींचकर
पान चबाले-चबाते आफिस जातें--कोई पालकी में और कोई साझे की गाड़ी
में । ओ लोग पैसेवालें थे, उनकी गाड़ियों पर तमगे लगे होते । चमड़े
के आधे घूँघटवालें कोचबबस पर कोचबवान बेठा करता, जिसके सिर पर
बांकी पगड़ी लहूराती रहती थी । पीछे की ओर दो-दो सईस खड़े रहते,
जिनकी कमर में चेंवर झूलते होते । स्त्रियों का बाहर आना-जाना बन्द
दरवाजे की पालकी कं दम घुटा देनेवाले अंधेरे में हुआ करता । गाड़ी पर
दना शर्म की बत थी । धूप और वर्षा में उनके सिर पर छाता नहीं लग
सकता था । किसी के बदन पर शेमीज और पर में जूता दिख गया तो इसे
मेमसाहबी फैशन कहा जाता । मतलब यह होता कि इसने लाज-हया
घोलकर पी ली है । कोई स्त्री यदि अचानक पर-पुरुष के सामने पड़ जाती,
तो उसका घूँघट राटाक-से नाक की फुनगी को पार कर जाता और बह
जीभ दांतों तले दब्ाफर झट पीठ फिरा देती । धर में जसे उनका दरवाजा
बन्द हुआ करता, वेसे ही बाहर निकलने की पालकी में भी । बड़े आवमियों
की यहू-बेधियों की पालकी पर एक मोदा घठटादोप-सा पर्दा पड़ा रहता, जो
देखने मे चलते-फिरते कब्रगाह के समान लगता । सध-साथ पीतल की
मोपवाली लाठी लिए बरबानजी चला करते । इनका काम था दरवाजे पर
बेठकर घर अगोरना, गलमुच्छे सहलाना और रिदतंदारी में स्त्रियों को पहुँ-
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