किस्मत की करामात | Kismata ki Karaamaata

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Kismata ki Karaamaata by गिरीशचन्द्र जोशी - Girishchandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्घेरेमें जाक्रमण १५ , आक्रमणकासने जोरा करका दिया ओर तीसरे भदमी- के पंजेसे निकलकर, जी ० श्रान्टके आगे बढ़नेके पहिले ही, अस्घ- कारमें छिप गया और तेजीसे भागता इभा आलस गोमख हो गया। जी० श्रान्टने पहिठे आक्रमणकारीके पीछे भागना चाहा ! उेकिन दूसरे ही झषण उसने समक लिया कि अव्‌ अन्धे आक्रमणकारीका पता छगाना सम्भव नहीं है। जी० श्राल्टने देखा कि तीसरा आदमी छुरेका घाव खाकर दिना दिले-डुछे थड़ा हुआ है । गहरा वार पड़नेसे मर न गया हो, इस संशयके साथ जी ० आन्ट उसपर रुका ! आदमी म्रेनाइटके पेरोंके पास पड़ा हुआ था, उसने आश्चयं पूवंक देखा कि उसे जरा भी चोट नहीं खगी | ओफ ! यह आदमी नहीं, दानव हैं। कितना मजबूत और बहादुर है। घू घी रोशनीमें जी » श्रान्टने देखा कि वह एक खास किस्मकी पोशाक पहिने हुए हैं। वह दीवालके सहारे गढीमें पड़ा हुआ था | एकाएक जी° श्रान्टने देख कि उसके हाथ भोर सुह काला है, वह विकर काठा निग्नो या निय्रो जातिके सम्मिश्रणसे पैदा हुआ आदमों है । | क्या तुम्हे चोर्रुगीदहै? जीण त्रान्टने काले आदमीके कन्घेपर हाथ रखते ओर उसके चेहरेको गौरसे देखते हुए पूछा ।




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