अमितगति-श्रावकाचार | Amit Gati Shrwakachar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
402
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ्रथम परिच्छेद । [३
करिये दै । तां जो ह्ञानकी मन्दतार्ते हीनाधिक अर्य हेय ताको
विशोषज्ञानी घुधार छोभ्यो, मोको मेदबुद्धि जानि कास्य मति कीज्यो,
यह विशेषज्ञानीनतें मेरी परोक्ष प्रार्थना है ।
उपजातिछन्द ।
नापाकृतानि प्रभवंति भूयस्तमांति यैदृष्टिइराणि पथ: ।
ते शाखतीमस्तमयानभिज्ञा, जिनेंदवो वो वितरंतु लक्ष्मीमू ॥ १ ॥
झथे--ते श्रीजिनरूप चन्द्रमा तुम्दारे शास्वती जो म्षर्क्ष्मी
ताहि विस्तारइ । कैसे हैं जिनचन्द्र अस्त किये हैं अज्ञानी परवादी
जिननें । बहुरि जिनकरि शीघ्र ही दूरि किये सम्पक्दष्टिके हरणेवाले
मोह अन्घकार ते फेर न होय हैं ॥ १ ॥
विभिध कर्मा्टकश्चुंखरं चे, गुणाष्टकेश्च्षुपेत्य पूतम् ।
प्राप्ता्िकोकाप्रशिखामणिखं, मवतु सिद्धा मम सिद्धये ते ॥ २॥
अर्थ--ते श्री भगवान मेरे सिद्धिके अथं होऊ! जे रिद
भगवान ज्ञानावरणादि अष्टकरमरूप सोकठ्कूं छेदि करि अर सम्यकतवादि
अष्ट गुणरूप पवित्र रेश्चयैको प्राप्त होय तीन टोकके चूडामणिपने्कौ
प्राप्त भये हैं ॥ २ ॥
ये चारयन्ते चरितं विचित्र, स्वयं चरन्ते जनमचनीयाः ।
आचार्या विचरन्तु ते मे, प्रमोदमाने हृदयारविदे ॥ २ ॥
अर्थ--ते आचार्यब्य किये आच।यनिविवै प्रधान आचार्यं
आनेदका देनेवाला जो मेश हृदयकमल ता बिषें विचरहू । केसे हैं
आचायै, जे नानाप्रकार चारित्रक आचरन करते सन्ते लोकर्को
आचरन करे ह याते पूजनीक हैं ।
भावाथ--बीतरागरूप धर्मकों आचरण करं हँ अर दयाल होय
ओरनिरको आचरन कर्यै है वेद्यै बीतराग भावनिके -वांछकनि करि
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