श्री स्वामी रामतीर्थ | Shree Swami Ramtirth

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Shree Swami Ramtirth by मंत्री - Mantri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अरण्य-सस्वाद्‌, ६ परष्नः--क्यः आप का अभिप्राय कोर नवीन मत प्रति थादन करने का हे ? ले उत्तरा- राम किसी मत का प्रतिपादक नहीं हे । सत्य अपना प्रतिपादन आप ही कर लेता हे । राम केवल परमेश्वर के मार्ग में व्वाधा नहीं डालता, झपने को ठीक स्फटिकवत चनाय रखता हे, ओर प्रकाश को स्वच्ठुन्दता पूर्वक-फेलने देता ` हे । उसका किसी मी रूप से चमकने दो । देह, मन सव को उस ज्वाला द्वारा प्रज्वलित होने दो । इससे अधिक सौभाग्य की कोई वात ही नहीं हो सकती । सन्देश मिल गया, सन्देश देने वाले को मार डालो । भ्रशनः-क्या झाप पंग़स्वर वा ईइश्वीय दुत ( 21005116 007006४ ) का काम करना चाहते हु ? उत्तरः-चदी, यद मेरौ महिमा के विरुद्ध है। मे स्वयं ईश्वर हूँ और बेसे दी तुम दो । यह शरीर मेरा रथ है । प्रइन। - यह ( आप का संदेश ) छृतकाय्य न होगा, लोग उस को स्वोकार करने के लिये तेयार नहीं हूँ । उतरा-उइससे मुझे क्या १ मे ( सत्य ) कभी इन तुच्छ विचारो के सहारे नदीं चलता । युग मेरे हं, अनत कालमेरा है । यदि ईसा अपने मनुष्यो से स्वीकार नहीं किया गयातो इससे 'क्या, समस्त संसार ने तो उसे अपना , लिया । यद्यपि उस के अपने समय में उसकी वात न मानी गई, किन्तु भविष्य युग तो उसके अपने ही थे । प्रशनः--इतिदास झझाप के इस विचार का समथन नहीं करता। सम--आप का इतिहास पूणे हे, इतिहास का वहः झध्याय, जिसे यदद 'खत्य' लिखने बाला है; झभी तक आप ने पढ़ा नहीं । इतिहास इढ़ संकल्प के सम्मुख कॉपता है, चाहे




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