नागरीप्रचारिणी पत्रिका | Nagripracharini Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिंदी के सो शब्दों को निरक्ति १०१
सं° त्रि, रोद् ॐ नीचे का भाग जहाँ कूल्दे को हृड्डियाँ मिलती हैं । तोन हड्डियों के
मिक्नने की जगह दोने के कारण यह स्थान त्रिक कहलाता है, जिसका रूप तिरक
अभी तक बोलियों में चालू है। त्रिक स्थान पर जो पदना जाता था वदद झाभूषणु भी
त्रिक कहलाता था ।
तेवर, तिउर्श-कपित दृष्टि, क्रोध-भरी चितवन । संक्षिप्त शब्दसागर में
इसको व्युत्पत्ति लेह--क्रोघ से मानी है । वस्तुत: दोनों भौंद्ों के बीच का स्थान
त्रिकुटी कहल्लाता है, उसी से तिषरी है। क्रोध के समय बह्दी श्रिकुटी का स्थान
खिंच या चढ़ जाता है ।
थबई--घर बन नेवाला राज । सं स्थपति > थवह-थबरं ।
दाव, दाँव--शब्दसागर में सं० दा प्रत्यय से इसकी व्युत्पत्ति सुकाई है जो
कल्पित है । वस्तुत: सं० द्रव्य से दुवव-दाव-दाँव हुआ । वह द्रव्य जो खिल्ञाढ़ी जुए
में लगाते हैं, दाव या दाँव कदलाता है । सीसे बाद के भं निकै, जेषे
फिसका दाँव है ।
पुस्ता-सं० दूर ये पाली दूरस 'और उससे घुस्स, घुरसा बना ज्ञात होता है ।
झथवेवेद ( ८1६११ ) में 'कृतीदूशीनि विश्वति', चमड़े के घुश्से झोढ़ने का उल्लेख
है । झशोक ॐ इलाहाबाद स्तंभ ल्लेख में सफेद घुस्से पद्ना कर लड़ाकू भिक्ुओं को
संध घे बार निकाल देने का आदेश है ( अंदातानि दुखानि ) ।
नरतल, नरकुल, नरकुट--घथवं० ६।६६।४ में कुत्र अज्ञात झौषधियों के नाम
ै--नोलागलसाल्ला, भलघाला, सिन्ञाजाला । नमे पडे दो नामों के अंत का 'साल्ञा
पद् पोघे या जल की घास के लिये प्रयुक्त ज्ञात हाता है। यह संभवतः निगराद भाषा
के शब्द का संस्कृत रूप है । सं० नक्ष + सल्ष.:” नरसल । अथव नज्ञकट > नरकट
शब्द भी नरसल के लिये प्रयुक्त होता है |
नहर--झक्कड़ी भाषा मरं नाद का भथं है नहर । वहीं चे यह शब्द् ना,
नदरु, नदर के रूप में दम तक पहुँचा है ।
नेकुद्रा--नाक का नथुना । सं० नक्र-( नाक ) पुट > नक्कडड् + क ~> नेकुड़ |
हेमचद्र ने 'अभिनानं चिताभशि' मे नाङ़ङ का पर्याय नङ्कटक ( १।२४५) शब्द दिया
है जो नेकुड़ा से बनाया हुआ संस्कृत रूप जान पढ़ता देश
नैचकी, नेक --झच्छी गाय । शब्वसागर में नेचिकी को संस्कृत कहा दे |
मष्यकाल्ीन कोषों में नेचकी को गायों में उत्तम गाय माना दे ( देमचंद्, झसि०
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