बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि | Bai Ajit Mati Avam Usake Samakalin Kabi

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Bai Ajit Mati Avam Usake Samakalin Kabi  by कस्तूरचंद कासलीबल - Kastoorchand Kasliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जाया करती थी तो लोग उसे पूर्णिमा का चस्द समन कर पाका में देखते लखते थे। कचि के बसे हो सभी वन एक से एक बढ़ कर है लेकिन इनमें यशोभर की रानी धतत कै सन्द दवं ` उसे विवाह को बेसन बहुत अच्छा हुंधा है । प्रत्येक रीतिरिंवाजं का बढ़ीं सूक्मंता से दर्शने कियो मयौ है 1 बारात की पंहुरीवेंशी होन एकं महंत्वपूररों रिवाथ मानों जाता, हैं कवि ने तिल हैं किं पहेरावत के लि परिवार के सभी संदर्भ एकितें हों गये हैं । राजा यशौंघर भपनी रॉनी भंमूतभंतती के रूप सौन्दर्य पर मुस्ब' थी । रात्रि की अब वह घंसूतम्ती के महल में गया ही उसको एक २ मंजिल पर जितना स्वागत हुआ किं नें उसको बहुत सूक्ष्म बेन किया है उसने भ्रपते जीवन में उसे भरमृत के समान समक्ता। यशोमती रानी का बसन्त कीड़ा का बर्सुन भी श्रनूठा हुमा है । इन सबके झतिरिक्त मुनि सुदत्ताचाये द्वारा घर्मीपदेश का भी कबि ते १३९ पद्यों में बर्शन किया है। पूरा रास काब्य €. झषिकारों में विभक्त है जो किसी काव्य के लिये पर्याप्त कहे ना सकते हैं । इस भाग में परिमत्ल चौधरी के श्रीपाल चरित्र का एक भाग ही दिया जा सका है शेष स्रभी कदियों की सभी रचनाशों के पूरे भाग इस में दिये गये हैं । यशोषर रासं श्वय ही एकक्राष्य है, इसके धभ्रतिरिक्त बाई भजीतमति की ६ कृतियां, महेन्द्र कीर्ति के पूरे १५ पद एवं धनपाल के ४ गीत इस प्रकार ३० मूल कृतियों के पाठ भी दिये गये हैं । सम्पादक मंडल :-- प्रस्तुत पुष्प के संपादक मंडल में माननीव डॉ० हीरालाल जी माहेश्वरी, डॉ० राजाराम जी जेन एवं डॉ गंगाराम जी सगे हैं। डॉ० माहेश्वरी राजस्थान विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में रीडर हैं । भाप राजस्थानी भाषा के जाने माने इतिहासश विद्वान एवं लेखक है । प्रकामी पर परापकी विशेष कृपा रहती है भापने विद्वतापूर्वे दो शब्द” भ्यक्तन्वे। लिखने की जो कृपा की है उसके लिये हम उनके भरत्पन्त भाभारो है। डॉ० राजाराम जैन मम विश्वविद्यालय के प्राकृत एषं प्रश्न क के ओफेसर है समाज श्रापकी विद्रा शे चिरपरिचित है। इसी तरह कोड मंगाराम जी यम युवा पीढ़ी के विदद्‌ है) जैन साहित्य पर शोध कार्य भापकी साचि में शामिल है । पार्वंदास निभोत्या पर कषे भण्डी खोज की है। तीनो ही विद्वानों के हुम हुबय सै झामारी हैं । अकादमों के संरक्षर श्री दिभेस कुमार थी सेंठी ने “संरक्षक की शोर से दो शब्द” लिखने की महती हषा कीरै) येही साद उदार भ्यक्तित्व के धनी {अप




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