अहिंसा - प्रवर्तक सर्वज्ञ भगवान महावीर | Ahinsa-pravartak Sarvagya Bhagwan Mahaveer

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Ahinsa-pravartak Sarvagya Bhagwan Mahaveer by गुलाबचन्द वैद्यमुथा - Gulabchand Vaidyamutha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ कहते हैं। इन महापुरुपोंके चरित्र-श्री हेमचन्द्र सुरिक्ृति 'त्रेपठ शालाका पुरुष चरित्र ' में हैं । भगवान महावीर जिस सर्पिणी काल में उत्पन्न हुए हैं वह अवसर्पिणी काल कहा जाता है । इस अवसपिणी काल में प्रथम तीर्थकर भगवान ऋपभ देव जी हुए । उनके वाद २३ तीर्थंकर और हुए हैं जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हँ (२) अजीतनाथजी (३) श्री सेभवनाथजी (४) श्रौ अभिनन्दनजी (५) श्री सुमति- नाथजी (६) पद्मप्रभ्‌ूजी (७) श्री सुपाश्वंनायजी (८) श्री चन्द्र- प्रभूजी (€) श्री सुविधिनाथजी (१०) श्री शीतलनाथजी (११) श्री श्रेयान्सनाथजी -(१२) श्री वासुपूज्यजी (१३) श्री विमल- नाथजी (१४) श्री अनन्तनाथजी (१४५) श्री घर्मनाथजी ( १६) श्री शास्तिनाथजी (१७) थी कुंथनाथजौ (१८) श्री अमरनाथजी (१६) थी मल्लिनाथजी (२०) श्री मुनिसुब्रतनाथजी (२१) ध्री नमिनाथजी (२२) श्री नेमिनाथजी (२३) श्री पाश्वनाथजी ओर (२४) श्री महावीर स्वामी ॥ इस प्रकार तीर्थकरों की क्रमावली पूर्णं होते हुए काल निर्माण का इतना समय वीत चूका है कि जिसकी गणना प्रत्येक तीर्यकर की आयुष्य ओर उनके मध्यकालीन व्र्पौ की गिनती लगाने से ही प्रतीत हो सकनी है। ये गणना जैन शास्त्रों में इतनी बताई गई है कि जिसे संख्यामें तो लिख सक्ते है परन्तु उस संख्या को पढ़ नहीं सकते । इसका कारण यह है कि माधुनिक समय में उतनी संख्या पढ़ने के लिये शब्द ही निर्माण नहीं हुए । इसीसे जेन धमं की प्राचीनता का पता चलता है कि यह कितना पुराना सनातन धर्म है ।




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