श्री उड़िया बाबा जी के संस्मरण भाग - 1 | Shri Udiya Baba Ji Ke Sansmaran Bhag - 1

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Shri Udiya Baba Ji Ke Sansmaran Bhag - 1  by स्वामी सनातनदेव - Swami Sanatanadev

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ख कनद ~~ ~~~» + => भ्रनन्तश्ची विभूषित जगद्गुर शंकराचायं ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी श्रीशान्तानन्दजी सरखत्ती ` प्रथम दर्शन ध्येयं सदा प्रिभवघ्नमभीष्टदोहुं तीथस्पिदं शिवविरद्िनुतं दरण्यम । भृह्यात्तिहं प्रणखवपालभवान्धिपोत्तं वन्दे भंहपुरुष ते चरणारविन्दम्‌ परम पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय श्रीमहाराजजीका परिचय मुभे उस समय मिला था, जव मै सच्‌ १९४२ ई० में चित्रकुटं भ्रमण कर रहा था । उन दिनों मै एक भ्रनुमवी गुरुकी सखोजमे था, जो गमे ससारसागरसे निकालकर प्रमानन्दकी प्राप्ति करा. ड1-एक महात्मने सुभे श्रीमहा राजजीका नाम सुनाया प्रीर बतलाया कि वे बडे श्रनुभवी, उदार, सर्वगुणसम्पन्न उच्चकोटिके महात्मा है। गंगाजीके किनारे रामधाट, कणँवास प्रादि स्थानोमें विचरते रहते हैं। नाम सुनकर भभ बड़ा हषं हृभ्रा और मनमें ऐसी उत्कण्ठा हुई कि शीघ्र चलकर दर्शन करू । सौभाग्यसे प्रयागके कुम्भमें मुझे श्रीश्रानन्द ब्रह्मचारी मिल गये । उनके द्वारा युके श्रीमहाराजजीका विशेष परिचय प्राप्त हुभ्रा । मँ उनके साथ श्रीहरि बानाजीके बधि पर पहुँचा, जहाँ उन दिनो श्रीमहाराजजी विराजमान थे । उस समय होलीके श्रवसरपर वहाँ श्रीचैतन्यमहापरभुका जन्मोत्सव मनाया जा रहा था । श्रीमहाराजजीके देन करके चित्त बड़ा प्रसन्न हुआ । परन्तु महापुरूषोकी महिमा बड़ी चिचित्र होती है-- '. 'संतकी महिमा वेद न जाने.।” बड़ी कठिन परीक्षा इई 1 परन्तु भगवत्करृपासे अ्रन्तमे शरण मिल गयी ।




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