दूब जनम आयी | Doob Janam Aayee

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Doob Janam Aayee by शिवसागर मिश्र - Shivsagar Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ दूब जनम ब्रायी सभी हार मान गये श्रौर जम्मू भ्रपनी जिन्दगी जीता रहा । जिन्दगी-रेल की पटरी जैसी नीरस, रूपहीन, पुरातन भ्रौर श्रछ्छोर 1 पर्चिम की ओर सुख किये जग्गू खडा था । लगभग पाँच मिनट से माल गाडी के इजिन की रोदानी ज्यो क्री त्यो दीख रही थी । उसकी समभ में नहीं आरा रहा था कि मालगाडी खडी क्यो है। जग्गु कुछ तय नहीं कर पा रहा था । वह एक टक इजिन की रोशनी को देख रहा था कि पीछे से खटका हुआ । उसने घूमकर देखा--करीब पच्चीस कदम की दूरी पर दो मानव मूत्तियाँ चली झा रही थी । जग्यु को झन्धकार मे कुछ स्पष्ट दिखाई नहीं पड़ा कि सयोगवदा गहरी बिजली चमक उठी । जग्गु ने देखा----झागन्तुको मे एक पुरुष और दूसरी नारी थी । दोनो मूत्तियाँ जग्गू के पास श्राकर रुक गयीं । पुरुष ने, थोडा हकलाते हुए, भ्रशुद्ध हिन्दी मे पूछा--“यहाँ एक-दो रात ठहरने के लिए कही जगह मिलेगी ?”' नारी झलग खडी थी । जर्यु ने अन्धकार मे उसे देखने की कोशिदा की । लेकिन उसके हाथ कुछ लगा नहीं। उसने नम्रता से पूछा-- “प्राप लोग कर के रहनेवालि ह ? * “राजस्थान के ।” पुरुष का सक्षिप्त उत्तर था । “देखिए, पास ही मे बिसेसरसिह का घर है। उन्ही के दालान पर चले जाइए । बहुत अच्छे झादमी हे ।”” “लेकिन, इतनी रात को हम लोग उसको कहाँ मिलेगा ? यहीं इस गुमटी मे रात भर रहने दीजिये तो बडी मेहरबानी होगी ।” पुरुष ने बड़ी दीनता से कहा । दूर पर वह स्त्री सिर नीचा किये खडी थी । जग्गु ने ज़रा सोचते हुए कहा, “शुमटी मे ? ` यहाँ तो बहुत कम जगह है।” जग्गु ने अमीन को तरफ देखा भ्रौर फिर वह्‌ श्रचानक ही बोल उठा--“श्रच्छा, मेरे साथ आइये ।” यह कहकर जग्यु गुमटी के भीतर से सरकारी हाथबत्ती उठा लाया जिसकी एक तरफ से ही गोल मद्धिम रोशनी निकलती थी श्रौर श्रपने घर की भ्रोर चल पडा । दोनो झागस्तुक उसके पीछे हो लिये । चार-पाँच मिनट मे ही जग्गु,स्पने घर पहुँच गया । फेट से उसने चाभी निकाली, दर-




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