चाँद के धब्बे | Chand Ke Dhabbe

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Chand Ke Dhabbe by शिवसागर मिश्र - Shivsagar Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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আঁক के धब्बे हानि है। वह तो कमाता है थौर खाता है | बीवी की मुहब्बत फूली भी नहीं होगी कि बच्चों ने हाथ फैला दिए होंगे । स्नेह दे या प्रेम करे | और स्नेह में प्रेम तथा कतंव्य दोनों ही शामित्र हैं। बेचारे छोटे हैं बाद !! भुवन कौ विचारधारा हूटी, जब गाड़ी की धमक सुनाई दी । विना सोचे-सम़े उसमे बनारस का टिकट कटा लिया । बाहर मेंह पड़ने लग गया था--रप्‌-टप्‌ । प्लेटफामं पर पर्हुचते ही गाड़ी श्रागई । भीड़ ऐसी कि „ भुवन श्रकवका गया । थोड़ी देर के लिए उप्तकी सारी चिन्ता गायब हो गई ओर वह गाड़ी में किसी कदर सवार हो जाते के लिये इधर-उधर दौड़ने लगा । उसने घर छोड़ दिया है, परिवार छोड़ दिया है, गांव छोड दिया है, गाँव के खेत-ख़लिहान सब छूट गए हैं, लेकिन अभी उसे गाड़ी पकड़ती है | पैसे की कमी से ऊँचे दर्जेका टिकठ ले नहीं सका । पहले तो वराबर इन्टर बलारा में ही चला करता लैकिन तब विद्यार्थी था, रईस था, साहि- त्यिक था, होने वाला पश्रफ़ातर था--जिलाधीश, न्यायाधीश श्रौर यहाँ तक कि देश का महानतम व्यक्ति था । लेकिन भ्राज वह असहाय है, उदास है, थका है, भौर है डारबिन के श्रतुसार मनुष्य का प्रादि-झहूप, एक माँस- पिड' । झ्राज ज़िन्दगी उसके पैरों में लिपट गई है जो चलने नहीं देती; कल' तक तो जिन्दगी उसके सिर पर थी, श्रांखों के नशे में थी। नहीं, नहीं, हवा में थी जिसे वह छू नहीं पा रहा था। लेकित आज ? गाड़ी खिसकने को आई तो वह लपककर एक डब्बे में घुस गया। वहाँ पहले से ही काफी आदमी ख़ड़े थे जो बैठे हुए बदतमीज मुश्ाफिरों को ईर्ष्या भौर क्रोध से धुर रहै थे । भुवन ठीक खिड़की के सामने खड़ा था । उसके सामने वालै बच पर ताश जमा हुआ था लेकित उनमें एक सुसाफिर पिछले स्टेशन पर उतर गया था और तीन जने बेढे क्रहक्दें लगा रहे थे, बीडी फूक रहे थे । थड़े क्लास कम्पारटंमेन्ट--बीडी, चना, बादाभ का तहुखाना, सब की देह से सड़े दही की-सी दुगेन्ध प्रारही थी। प्रभ्यास ने हो तो इस हे




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