वर्णी अध्यात्म - पत्रावली भाग - 1 | Varni Adhyatma Patravali Bhag - 1

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Varni Adhyatma Patravali Bhag - 1  by दरबारी लाल कोठिया - Darbarilal Kothia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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< : बर्णी अध्यात्म पत्रावली श्रीयुत त्रिलोकचन्द्रजी दर्शन विशुद्धि । बाईजीको दमा हो गया है । यदि योग्य दवा मिले तब आराम हो सकता है । आप किसी हकीमसे पुछकर नुसखा छिखना । उनको दमा गर्मीसि है। रात्रि-दिन निद्रा नहीं आती । किन्तु धर्म॑मे दढ श्रद्धा है शिथिलताका नाम नहीं । आप धर्ममे दुढ रीतिसे श्रद्धा रखना और भूल कर त्यागमे न पड जाना । जेसी कषाय घटे वैसा त्याग करना । मेरी लाला हुकमचन्द्र आदिसे दर्शन विदुद्धि । यदि बाईजीका स्वास्थ्य अच्छा होता तो में गर्मीमे वही रहता । मुझे आप लोगोंका समागम बहुत रुचिकर है--बाबाजीसे इच्छा- कार । विशेष फिर । उत्तरके लिये जवाबी पोष्टकाडं या टिकट आना चाहिये । श्रीयुत त्रिलोकचन्द्रजी दशन विशुद्धि । भब गर्मी बहुत पडने लगी है । बाह्य गर्मी-अभ्यन्तर गर्मसि रान्तिका लाभ होना अत्यन्त असम्भव है परन्तु कषायवदा भ्रमण करना पडता है) यहा भ्रमणमे शान्ति कहा? जो सुख ओर शान्तिका लाभ एक स्थानमे ओर परके असगमे होता है, वह्‌ कदापि परके समागम ओौर नाना स्थानीमे नही होता । अस्तु, पत्र इस पतेसे देना--गणेकशप्रसाद वर्णी (मधुवन) तेरा- पथो कोटी-पोस्ट पारसनाथ जिरा-हजारीबाग । छ श्नीयुत महाशय लाखा त्रिरोकचन्द्रजी योग्य दशन विशुद्धि । पत्र आपका आया । समाचार जाने । आपकी विचारधारा




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