कुंती नाटक | Kunti Natak
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
0.65 MB
कुल पष्ठ :
28
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जल किम मुंह से नूप सभा में ऊंची बात वर्ना ।
बृठत छीजें प्रभा दमरी क्या मुंह दिखेंगे ।
समुद्र विजय से पुत्र हमारे कह क्या नाम धरावेंगे ।
जहां जादेंगे वही इम वात से सदा छजाएँंगे !
छत्री छठ जादी बंसी हम, तें कुछ इक नहीं कीना ।
कती सुता के संग कहो यह दुसकत किसने कीना ! अरी० २ ;
नागन जल नागे नर सोम कभी भरोसा नहीं करना ं
पावक टी नाग मुख अमन शासन नहीं वरना ।
पच्छा सूरज उगे मेरु चल पड़े तो हुदय घर लेना ॥
! चुध जन होके कभी विश्वास नाए का नहीं करना ।
इम कह कोप किया राजा ने खड़ग सूत कर मे लीना ।
। कुती छता के संग कहां यह दुसकत शिसने कोना । अरी
जरी घाय पुन सीस तेरा कुती का अभी उद्राएंगी ।
इस छठ व का तुम्ई दोनों को मजा चब्ाएंगा।
। आग सदन को छाय दुझे झंती को मांडी जला दूंगा ।
, ! तूनददी जाने वेश उत्री सो तुझे दिखादूंगा ।
कहें राजा धाये सच कददे इसी में तेरा हे जीना ॥
कुंती सुताके संग कद्दों यह दुसझत किसने कीना । अरे ०४ ।
(१९
चाल ॥ सारा रीना लगना नी अब यर 'मानाना ॥
( अब घाप का राजा में हाल कहना जार तेमा मागना ॥ )
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नरिशशलटएगशरयसपयटप या
न्-बहथवनपलनााथनणणाणण, है _._
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हटानकदथया
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टुक सुनिये तो मददाराज नेक दिपा कीज !
ना * न नधधमाणााानटण। नननगा न. न न
दर लक नर ना कपल
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