कुंती नाटक | Kunti Natak

Kunti Natak  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जल किम मुंह से नूप सभा में ऊंची बात वर्ना । बृठत छीजें प्रभा दमरी क्या मुंह दिखेंगे । समुद्र विजय से पुत्र हमारे कह क्या नाम धरावेंगे । जहां जादेंगे वही इम वात से सदा छजाएँंगे ! छत्री छठ जादी बंसी हम, तें कुछ इक नहीं कीना । कती सुता के संग कहो यह दुसकत किसने कीना ! अरी० २ ; नागन जल नागे नर सोम कभी भरोसा नहीं करना ं पावक टी नाग मुख अमन शासन नहीं वरना । पच्छा सूरज उगे मेरु चल पड़े तो हुदय घर लेना ॥ ! चुध जन होके कभी विश्वास नाए का नहीं करना । इम कह कोप किया राजा ने खड़ग सूत कर मे लीना । । कुती छता के संग कहां यह दुसकत शिसने कोना । अरी जरी घाय पुन सीस तेरा कुती का अभी उद्राएंगी । इस छठ व का तुम्ई दोनों को मजा चब्ाएंगा। । आग सदन को छाय दुझे झंती को मांडी जला दूंगा । , ! तूनददी जाने वेश उत्री सो तुझे दिखादूंगा । कहें राजा धाये सच कददे इसी में तेरा हे जीना ॥ कुंती सुताके संग कद्दों यह दुसझत किसने कीना । अरे ०४ । (१९ चाल ॥ सारा रीना लगना नी अब यर 'मानाना ॥ ( अब घाप का राजा में हाल कहना जार तेमा मागना ॥ ) गा दे कम नरिशशलटएगशरयसपयटप या न्‍-बहथवनपलनााथनणणाणण, है _._ दर रे हटानकदथया बिक टुक सुनिये तो मददाराज नेक दिपा कीज ! ना * न नधधमाणााानटण। नननगा न. न न दर लक नर ना कपल




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