धर्म पर लेनिन के विचार | Dhram Par Lenin Ke Vichar

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Dhram Par Lenin Ke Vichar by श्री कृष्णदास जी - Shree Krishndas Jee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ ) हैजोकिं धमे का प्रष्ठपोषण करता है। ऐसा करते समय लेनिन ने द्रन्द्रात्मवादो भोतिकवाद की पूरी विवेचना भीकीहे। . धमे के प्रति मौजुदरा मजदूर आन्दोलन काक्या रुख होना चाहिये, इस विषय पर जिन माक्संवादी चाचार्यो ने जो कु लिखा है उनमें सब से अधिक पूणं लेनिन के वे विचार हैँ जो इस पुस्तक में पहिले दो लेखों के रूप में आये हैं, ( ये लेख क्रमश: १६०४५ श्रौर १६०६ में लिखे गये थे ) । दूसरे लेख की तरह तीसरे लेख का सम्बन्ध धमं सम्बन्धो उस वादा-विवाद से है जो जःरिस्ट इयमा में (१६०६) हुई थी । इस लेख में उदार पूं जीपतियों के प्रतिक्रया- वादी धमौलयो के प्रति कमज़ोर और प्रतिक्रयावादी रुख की ओर विशेष ध्यान दिया गया है । चौथा लेख १६०२ में कट्टर ईश्वरवादियों और अमीर श्रेणी के एक उदारमना व्यक्ति के मंगड़े के अवसर पर लिखा गया था जिससे उस इश्वरवादी व्यक्ति की इस मूल्यवान स्वीकृति पर करि “श्ाखिरकार धर्म में घरा ही क्या है””--पर काफ़ी रोशनी पड़ती है । 'माक्सेवादी भर्डे के नीचे (10167 ४४6 ४००९६ 0 11981571 )--१६२२- नामी वैज्ञानिक बोलशेविक पत्रिका के प्रथम अंक की भूमिका में लेनिन ने एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने पार्टी के भीतर और वाहर अनीश्वरवाद की शोर से अविराम संघषे की आवश्यकता पर ज़ोर डाला था । यह लेख हमारी पुस्तक में पाँचवें लेख के रूप में श्राया है । इसमें हमें त्ग्प्म




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