साहित्य - समीक्षाञ्जलि | Sahity-samikshanjali

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Sahity-samikshanjali by सुधीन्द्र - Sudhindra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कला की भारतीय परिभाषाः ˆ पीछे घर की कौड़ी-कौडी पएूकडाली दैः । पत्नी के तन पर से एक-एक छल्लातक उतरवा लिया दे | छोटे-छोटे बच्चे दाने-दाने को बिलख रहे हैं । सारा परिवार कष्ठ और दुदेशा में निमरन है । फिर भी वह्‌ जुश्रारी श्नपने नशेमें मस्त है और उसके लिए पेसे का प्रयन्ध करने के लिए जधन्य-से-जधन्य, भीषण « से - भीषण कर्म कर डालता है। समाज उसे नारकीय कह्ेगा, जाने किस- किस प्रकार दरिडित करना चाहेगा; किन्तु कलाकार का हृष्टि- कोण सांसारिक दृष्टिकोण से भिन्न है । वह दुष्कर्म से धृणा करता है किन्तु दुष्कर्मी के प्रति, उसकी बेबसी के कारण कलाकार की सदाहुभूति है, उसका हृदय रो उठता है। इसी प्रकार किसी चोर, हत्यारे, कुलदा, सामान्या, स्वेच्छाचारी, आततायी, अत्याचारी इत्यादि-इस्यादि का पतन कलाकार के लिए दया का विषय है, करणा का विषय है । के प्रेस की दीस, सुद्दब्बत का दूद जिसके कारण स्त्री पुरुष पर, पुरुष स्त्री पर, माता पुत्र पर, सेवक स्वामी पर कौर भक्त भगवान पर, निछावर हो जाता है किंचा, वद्दी टीस जब उत्साह के रूप में परिणत होकर युद्वीर को अपनी जान पर खेल जाने के लिए प्रेरित करती है, दनिवीर को अपना सवेस्वर दे डालने के शिए उद्यत कर्ती दैवा दयावीर से शरीर उत्सर्ग करा देती हैं; तो प्रेम की इस अमायिकता से भी, लिससें आदर्श और सौन्दय का भेद नदरी रह जाता, कलाकार विगलित हो उठता है और उसकी कृति में एक तड़प कीं उठती है ।- अथवा, यों किये कि प्रेम की उस ठीस से उसके हृदय की एकतानता हो जाती है| जिसे वह अपनी कृति के सूरत रूप में शाभिव्यक्त करता है । करुण रस की यह व्यापक परिधि इुम इतनी विस्तीणं कर सकते हैं. कि उसमें सभी रसों का समाधेश हो जाय 1 किन्तु, जो उतना मानने के लिए मस्वुत न हों उनके लिए इतना ही अलम होगा कि कलाकार की प्रत्येक झत एक सद्दाशुभूति- सय झमिव्यक्ति है । कलाकार को यह्‌ तथ्य अवगत है कि अशोभन में भी सगवान की रचना की एक शोभा,है; सुकुमारता है, जिसे शोभन के साथ मनिरखकर ही तीजासबय की इस अनन्त लीला का पूरा-पूरा रख मिल. सकता है । अथवा यों कड्िये कि कलाकार के लिए परमात्मा ही




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