कथा भारती असमिया कहानियां | Kathaa Bhaaratii : Asamiyaa Kahaaniyaan

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Kathaa Bhaaratii : Asamiyaa Kahaaniyaan by निर्मलप्रभा बारदोलोई - Nirmal Prabha Bordoloi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जलकुंबरी लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा रूपही छोटी नदी है । सूखे के दिनों में पानी उथला रहता है । उस पानी को कहीं से बहकर आती हुई स्फटिक-धारा कहने पर ही उपमा ठीक बेठती है । मगर वर्षा के दिनों का पानी बटलोई में लिपाई के काम आने वाली कीचड़ जेसा हो जाता है । आश्चिन-कार्तिक महीने की रूपही मौन दुबली और लजीली-सी होती है वहीं आषाढ़-सावन महीने की रूपही थुलथुल मोटी उछलती-कृदती और नर्तनमयी हो जाती है । देखने पर यह अनुमान लगाना कठिन हो जाता है कि क्या यह वही रूपही है । रूपही के तट पर एक निर्जन एकांत स्थान पर एक बड़ा-सा पाकड़ का पेड़ है । उसी पेड़ के नीचे एक लड़की सुबह से शाम तक बेठी हुई दिख पड़ती है । उस लड़की की नजर रूपही की छाती पर पड़ी एक भंवर पर होती है । उसे भंवर न कहकर रूपही का मुख कहना ही ठीक है । लकड़ी कूड़ा-करकट जो कुछ वहां पहुंचता है सबको रूपही अपने पेट में डाल लेती है। उस लड़की का रोज का काम यही था कि वह कहीं से कुछ नलकियां सरकंडे बटोर लाती और एक-एक कर उस भंवर में डालती जाती । फिर वह तमाशा देखती रहती कि वह लकड़ी किस तरह पहले तो धीरे-धीरे फिर तेजी से तकली की भांति चक्कर काटती हुई तुरंत अंदर समा जाती है । उसका एक और काम यह था कि वह रूपही के साथ बातें करती रहती और बीच-बीच में ऐसे कुछ गीत बनाकर रूपही को गा-गाकर सुनाती रहती जिनका कोई ओर-छोर न होता । ऐसे ही एक गीत का नमूना है - तइ़ओ रूपही मइओ रूपही रड ते रूप चरिल इकरा पातेरे नाओ बाइ गलों सों माज पायेइ बुरिल । यानी - तू भी रूपही है मैं भी रूपही रूपसी हूं । रंग से रूप बढ़ गया । सरकंडे से नाव खेती रही नदी के बीच पहुंचते ही नाव डूब गयी 1 सोलह साल की वह लड़की भला यह सब बचपना करके कैसे समय गुजार रही है यह या तो भगवान जानता है या खुद वह लड़की | उनके साथ समय का तो जरा भी मेल नहीं है । प्रेड़ के नीचे बेठे-बेठे उसके वक्त गुजारने में समय को जैसे घोर आपत्ति है । दुनिया में अगर समय रूपी घोड़े के साथ दौड़ न सके तो वह मनुष्य को पीछे छोड़कर गुजर जाता है । एक दिन उसके लिए दूल्हा और विवाह तय हो गया । दूल्हा बाईस साल का देखने-सुनने में अच्छा और अच्छे कुल का था । लड़की के




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