भारत की संस्कृति - साधना | Bharat Ki Sanskriti Sadhana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अवनरणिका ३ सौष्डयं जलकर 4 9 अर भव्य मनाच्रा 3 प चित्र न रीर काव्य न ददि ठव तौर से (ग्य क अआभव्यरू जनाउ का चित्र, मूति, वास्तु {र कत्य जाद्‌ व क शति ~~ मा व्यम्‌ म निप्सा प्रदान नकः === नकन >~ प्राय पाक पिकः = विधान ~~~ नस्य रा के माध्यम से प्रति दान करते हूं । प्रायः प्राकृतिक संविधानों के अनरूप हू 1 ५ ५५ ५ हि भाव भारत को सांस्कृतिक, सामाजिक श्रौर राजनीतिक एकता का प्रादुर्भाव हुआ । राजनीतिक परिस्यितियाँ ` {त्तम्‌ भ्न त सास्क्रात ठ ्मम्थ्य चकास न पूर्‌ राजना दिक पार १ स्थि य ५ का कन ज नमोनमो कना दन कं चखास्क्रतिक विकास पर राजनीतिक रस्थितियों का प्रभाव न नि पडता 3 ए {नि नरन ~ न र्‌ जा अस्नन का नः भ {ति श्र 0 रच त्नएः म पड़ता ह 1 चरति नास्त मे राजा सस्क्ात का सरक्षक हाता वा । नाराय दृाष्टकोपं € पधा मना नथ दत + र ~~ -~--~- ॐ --- का बाद नल जा गा प्त = छतां 4 राजा तवा नजा जवान राजा के गुणा का दन धरना म प्रातप्ठिति होत कि रार न मा र न व रा जा ही स्र स्च द स पर नायात कप = धव च ण्न टं 1 रष्टराय मन्क्रानिं के प्रति राजाको त्रभिरपि हात पर अनायास हा सास्क्ञातक ---------- = 4 न 3 अर 2 यद्धि प राजा न साय्सय ~> हे = 11 के नस्या व्डन लगता हू आर याद राजा कहीं राप्ट्राय सस्कात कं प्रति ठा मान कनी = श्रधवा राट क ऋषि {न्त व त्र चिरोधी यमन क सस्ति य~ कन {टदा ककः = ण जि = टू अववा राष्ट्रीय तरतत क्त वराघा हा ना सस्क्नांत क लाय हति कि क लगना यायक > = नागन ज्ञ नाल्तिक उति हि दर नहां लगता । भारत के सास्क्ञातिक झातिहास म परिस्थितियों के कारण उत्पन्न हुई विपमत्ताये प्रत्यक्ष ही है । किसी भी राष्ट्र में जान्ति अर सुव्यवत्या होने पर स्वणिम सस्क्ति का ब्रम्यदय होता है । एतिहासिक परिस्यितियां संस्क्ति की _रूप-रेखा के विन्यास म कुछ विले प्रकार कौ एतिहासिक परिस्थितियों का प्रभाव परिलक्षित होता है। इनमें सबने अधिक महत्त्वपुर्ण है किसी एक देव के घिविथ जन-समुदायों का पारस्पर्क्ति सस्पक अववा विदेशी जातियों स सम्पक । एसा पारान्यात मे अनक सस्कातया का ।सलन हीाता हू तर प्राय: सभी ज सस्झकतियीं एक = प्र {त द = ण्न श्रत व - - काइ पस्क्तय शक दूसर ने श्रनाविय दा हु श्रवना उप सना नस्क्र। तथा म न काइ एक { ६ द न या = क न ५ म अत्मा म कन्ननान- कननण्न्ौ = अ परिपृष्ट ~ वजचिनी वन कर अन्य संस्कृतियों के उक्क्तेष्ट गुणों को श्रात्मन्नात्‌ कनके पार्पुप्टं वन जाता ह। सारताव ्ाय-सन्क्ात के अतए & मप-नमय पर्‌ एना एतहासक परिस्थितियां उपादेय निदं हई = 1रास्वातया उपादय मिद्ध ६३२२ ) महापुरुषो को देन श क श्रपने विचारो. तियो ओर सन्देगो क द्ारा सार्क्रातक वारा को अआआननवं ~ र मोड देन ग्री लोगों को सांस्क्तिक चिकाय क तर प्रवतत कर देना महा दिद) 1 मं ड दन { जरर लाया क्म सास्क्नातक वकाम का जार ष्‌ ना करू अ( धद हत्वप सास्करतिक्त इतिदास से प्रतीत होता है कि यदि दया होता तो देव आज जहाँ है, वहाँ हुमा हात्ता ता द्या का संस्कृति न = ह, ३६। 41 4 1 | 11 /21| 11 नि < ~~॥ 4 211 ‡ 211 कोड्‌ एक वििष्ट पर्प न से बहुत पीछे होती । श्राघुनिक युग क लिए नहामानवे गात्रा का दन इत्ता प्रकार्‌ कं ~» यम >> म ~~ कमर व सांस्कृतिक अध्व त्थान = त 1 कमी -कनो असंख्य महापुरपा का वुन-चतना ना चत्ता जक्रार न्ट च ्सुप्वातत मे योय देती है । असंख्य महपियों कौ तपःसावना ओर चिन्तन के फलस्वरूप उप- भ (र उपनिपदों ~+ ~ क्यश्‌ रतीय संसक्ति ग विकास == निपदो का प्रणयन हुञ्चा 1 इन उपनिपदों का भारतीय सरक्ात के (विकास के लिए




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