परमात्मप्रकाश प्रचवन भाग - 7 | Paramatmaprakash Pravachan Bhag - 7

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Paramatmaprakash Pravachan Bhag - 7 by श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नि १९१ करनेका यदह मुस्यतया सिद्धान्त बताया! जाता है श्र यहां ज्ञानी पुरुप उसको कहा गया है जो सब जीबोंको एक रुूसान देख रूकता है। यों सर्व- जीवों मे समताका वर्णन सुनकर यहां कोई जिज्ञासु पुरुप एक प्रश्न करता जो प्रश्न झवसरक बहुत योतय हैं और च्सका समाधान भी यहां किया जायेगा । यह प्रश्नोत्तर कलके टिन कहा जायेगा । यहा यद्द शंका की जा रही है कि जेसे एक दी चन्द्रमा वहुतसे पानी वाज्ञे वर्त॑नोमे भिन्न-भिन्न रूपसे दिख जाता है, इसी प्रकार एक दही जीव वहुतसे शरीरोमे सिन्‍न-सिनन रूपोंसे देखा जाता है। ऐसा हम म.नते हैं । ऐसा एक प्रश्न है। इस शकाका झसिप्ाय यह है कि एक ही जीव एक ही समयमे भिन्न-मिन्न शरीरोमे भिन्त-भिन्न दिख जाता हैः ऐसा झन्य मन्नव्यका प्रश्न है नरह वादका । जितना मंतव्य हे बह किसीनविसी आधार को लेकर उठता है, किन्तु जिस दृिसे तथ्य दै उस इष्टिको द्धोड व्या तो फिर गलत होता है । कोई मंतव्य ऐसा नहीं जो मूलसे गलत हो । चाहे इश्चरवाद हो, चाहे श्रह घाद हो, चाहे कषणिकवाद हो? कोई मूलसे निराधार हो श्रौर वन गया हो--देसा नदीं है, खिर वेः भी छपिजन ये, बुद्धिमाच्‌ थे । उन्ददोंने झपने विवेकसे काम किया है। यहा यद्द मतब्य है कि एक ही जीव एक ही समयमे दिम्ब जाता है । यद मंतञ्य निकला कहासे ? पिले इस पर विचार करो । द जेनसिद्धान्तकें अनुसार जीवके वारेमे चार दृष्टियोसे निरखना होता हे--घहिरात्सत्व; ंतरात्मत्व, परमात्मत्व 'र 'छात्मस्वर । जो वाहरी पदार्थों मे अपनी बुद्धि लगाये; यढ मैं हू; वह ' वद्टिरात्मा हैं घर अपने झापके निज श्ात्मस्वरूपसें यद्द प्रतीति करे कि यह में श्ञात्मा हु, वद्द झतरात्मा हुआ । शोर जो निर्दोप बन गया है उसका नाम परमात्मा है श्रोर समस्त ात्माबों में रहने वाला जो चेतन्यस्वरूप हैं; केवल स्वरूपमें स्वरूपफी दृष्टिसे निरखा जाता हैं चद्द छात्मस्व दे। जब 'छात्मस्वकी इृष्टिसि देखते हैं तो उससे व्यक्तिया नजर नहीं झातीं। जेसे १० चतंनोंमें पानी रखा है, उसके नापकी इष्टिसे देखें तो १० जगह नजर श्ायेगाः पर जलका स्वभाव केसा दै, मात्र स्वभावकी दृष्टिसे देखें तो १० जगदद पिंर्डॉसे रखा हुआ नजर न श्ायेगा । देवल स्वभावमात्र दृष्टिम दे। इस प्रकार जब 'ात्माकों छन्य-छान्य विशेष- तावों से रेखा जायेगा तो भिन्न-मिन्न भात्मा नजर छाता हैं । भिन्न-भिन्न 'आत्मावोमे झात्माकों ही जब देखते दह, तो स्वल्प चू कि सवम समान है, उस दृ्टिसे आमा एक सायिन हरा स्वरूप ष्टिसे, स्वभावदृष्टिसे । प्रव इस सिद्धान्तफे मन्तन्यमे दो दृप्टियोंका मेल किया गया है ।




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