आत्मानुशासन प्रवचन भाग - 5 | Aatmanushasan Pravachan Bhag - 5
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाथा १२३ ११
होता दे 1 र्थी इसमे अज्ञान चव उत्पन्स नहीं हो रहा है । श्रश्ुभोपयोग
का स्याग करना, शपो प्रयोगका श्रालम्बन केना, शुद्धौपयोगका लक्ष्य रखना
इौर शुभ्रोपयोगसे भी लियुत्त होना यह सब थात्मद्वितिकी सिद्धि करने की
सामश्यं इस न्ञानकलावान पुरुषमें प्रकट हो जाती है । हम सबका एक ज्ञान
ही रक्षक है ।
ज्ञानगुएको गम्भीरता दे खिये--प ज्ञानगुण) विशेषता, यह ज्ञान
कितना गम्भीर शोर च्दार है? इस ज्ञानशुणके किप्टी भी परिशुमनके कारण
जीबके कर्मबंध नहीं होता । थोड़ा ज्ञान जिसे है, बहुतसा ज्ञान जिसका
ढक गया है। एकेन्द्रिय दोइत्ट्रियि झादिक जिस ओक जितना ज्ञान प्रकट
हा है बह सव ज्ञान, सव जो का वध नरी करता । ज्ञानकी किसी भी
प्रकारकी अवस्था संसारम नदीं सानी, किन्तु श्रद्धा और चासि इनका जौ
विकार है, मिथ्यात्व हो गया यह श्रद्धाका विकार है । कषायें हो गयीं यह
चारिन्रका विकार है। इस श्रद्धा और चारित्रके विकार ससारभे जीवको
रुलाते हैं। ज्ञान कितना भी प्रकट हो; कितला भी ढक हो, ज्ञाततकी कोई
स्थिति इस जीचको बध सहीं करानी । जब की ज्ञार्की कमीकी हालत में
था कुज्ञानकी रिथितिमें उीवक्ता कमंबन्ध होता दै वह मिथ्यात्वके कारण
कर्मबंध हो रद्द है; ज्ञानके कारण नहीं दो रहा हैं । द्वान तो स्वभाषसे टी
ज्ञानरूप हैं। बह न सम्यक् होता 'सौर न मिथ्या होता) पर मिश्यात्वके
उदयते ज्ञान भी पिथ्यास्व फहलाना दै श्नौर सम्यक्टके प्रकट होने से क्वान
भी सम्यक् हो जाता दै |
जञानालम्बनफा करतव्य--भेया 1 जो ज्ञान एतना गन्भीर है उस ज्ञासका
प्मालम्बत ज्ञे कोई, तो उसे सच्चा शरण मिलता दै । ज्ञनक। शरण फभी
घोखा नहीं दे सकता | हम 'माप सुखी होनेके लिए वही वैभचका शरण
पाना चाहते दै, दृ टना चाहते दहै, पर इन बाह्यपदार्थाकी शरण हमे अना-
छुल लद्दीं कर सकनी | हम श्रपनेदही इस शुद्ध सहज ज्ञानका शरण हें,
चस्तुसह्टपको जानकर इसही परम स्वभावरूण परी प्रतीति करे शौर
इन बिमावोसे दुर होकर शाश्वत आनन्द पाये, अपनी शरण क्ते, अपने
ज्ञानकी रोर मुके ! इस ही हमारा सर्वं अभ्युदय है । |
विधूतत्तमसो सगस्तपःश्र तनिवन्धन' ।
स्ध्याराग इबाक्य जन्तोरभ्युदयाय सः ॥१२३॥
शुभरागका ब्रभ्युदयम सहयोग--जिस जीवका अज्ञान झधकार दूर हो
गया है उस जीयफा कभी कुछ काल तक राग उठता है तो तपस्यामें; ज्ञालमें
सयममे इन शुभकार्योमें राग होता है। सो उस झ्वानी पुरुषका यह राग
उसके उत्थानके लिए है । जैसे कि सुबहके समयमें जी प्रभात्कालीन लालिमा
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